बागेश्वर /लता प्रसाद: उत्तराखंड अपने पारंपरिक खानपान के लिए देशभर में प्रसिद्ध है, और इसी कड़ी में पहाड़ी व्यंजनों में पेठे की बड़ी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह बड़ियां विशेष रूप से सर्दियों की शुरुआत में बनाई जाती हैं और सालभर तक खाने के लिए स्टोर की जाती हैं.
Bharat.one से बातचीत के दौरान स्थानीय महिला किरण पांडे ने बताया कि पेठे की बड़ी की विधि जितनी दिलचस्प है, उतनी ही यह खाने में स्वादिष्ट भी होती है. इसे आमतौर पर पहाड़ों में चावल के साथ परोसा जाता है.
पेठा बड़ी बनाने की रेसिपी
पेठे की बड़ी बनाने के लिए सबसे पहले पेठे को कद्दूकस किया जाता है. फिर कद्दूकस किए गए पेठे को सूती कपड़े में बांधकर उसका सारा पानी निकाल लिया जाता है. इसके बाद उड़द की दाल को सिलबट्टे में बारीक पीसकर इस मिश्रण में मिलाया जाता है. फिर इस मिश्रण को 5-6 बार हाथ से अच्छे से फेंटा जाता है. मिश्रण की सही गुणवत्ता जांचने के लिए इसे पानी में डालकर चेक किया जाता है. इसके बाद, मिश्रण को रातभर के लिए रख दिया जाता है. अगले दिन, धूप में इसे छोटे-छोटे गोले बनाकर सुखाया जाता है, जिन्हें बड़ियां कहा जाता है.
पेठे की बड़ी को स्टोर करने का तरीका
इन बड़ियों को धूप में 10 से 15 दिन तक सुखाया जाता है, ताकि इनमें से पूरी नमी निकल जाए. जब बड़ियां पूरी तरह से सूख जाती हैं, तो इन्हें स्टील के डिब्बों में स्टोर किया जाता है, जिससे इन्हें सालभर तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
पेठा बड़ी का महत्व और इस्तेमाल
हालांकि बागेश्वर के बाजारों में पेठे की बड़ियां बेचने का प्रचलन नहीं है, लेकिन स्थानीय लोग इसे बड़े पैमाने पर अपने घरों में बनाते हैं. यह बड़ियां न केवल खुद के लिए बनाई जाती हैं, बल्कि रिश्तेदारों और शहरों में पढ़ने या काम करने वाले बच्चों को भी भेजी जाती हैं. गांव से शहर जाने वाले लोग इसे अक्सर उपहार के तौर पर भी ले जाते हैं, जिससे यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी पहचानी जाती है.
FIRST PUBLISHED : October 3, 2024, 12:06 IST
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