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500 फीट की ऊंचाई पर बना है श्री राम का ये मंदिर, 350 सीढ़ियों की है चढ़ाई, मराठों से जुड़ा है इतिहास


अनुज गौतम, सागर: सागर जिले की पहाड़ी पर स्थित टिकीटोरिया का सिंहवाहिनी माता मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे छिपी ऐतिहासिक कहानी भी इसे और खास बनाती है. यह मंदिर सागर के धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है. यहां तक पहुंचने के लिए 350 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं और यह मंदिर लगभग 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है.

यह मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि मराठा कालीन इतिहास से भी जुड़ा हुआ है. इस स्थान का नाम पहले तिखी टोरिया था, जो बाद में टिकीटोरिया के रूप में जाना गया. इस मंदिर का निर्माण मराठा रानी लक्ष्मीबाई खेर के आदेश पर कराया गया था, जिनका उद्देश्य राम-जानकी की प्रतिमाओं को स्थापित करना था. हालांकि, एक विशेष कारण से इन प्रतिमाओं को यहां स्थापित नहीं किया गया, जो इसे एक दिलचस्प और अनोखी कहानी बनाता है.

मराठा शासनकाल में मंदिर का निर्माण
यह मंदिर मराठा कालीन है और इसका निर्माण 1732 से 1815 के बीच मराठा शासनकाल के दौरान किया गया था. सागर का यह क्षेत्र उस समय मराठों के नियंत्रण में था, और इसी दौरान राज परिवार के सदस्य पंडित गोपाल राव ने यहां मंदिर की नींव रखी थी. शुरू में यह मंदिर राम, लक्ष्मण और सीता की प्रतिमाओं की स्थापना के लिए बनाया जा रहा था, लेकिन बाद में यहां माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दी गई.

प्रभु राम को दोबारा वनवास न मिले
इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक दिलचस्प कारण छिपा है. इतिहासकार डॉ. श्याम मनोहर पचौरी ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि मराठा शासिका लक्ष्मीबाई खेर को यह विचार आया कि यदि राम-लक्ष्मण-सीता की प्रतिमाएं ऊंची पहाड़ी पर स्थापित की जाती हैं, तो यह उनके वनवास की पुनरावृत्ति के समान होगा. उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि भगवान रामचंद्र को वनवास से लौटने के बाद फिर से वनवास देने जैसा हो जाएगा, यदि उन्हें यहां स्थापित किया गया.

इसी विचार के चलते, लक्ष्मीबाई खेर ने यह निर्णय लिया कि राम-जानकी की प्रतिमाओं को इस पहाड़ी पर स्थापित नहीं किया जाएगा. इसके बजाय, रहली नामक स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया, जो बाद में जगदीश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. यह मंदिर आज भी रहली में स्थित है, जहां भगवान राम की प्रतिमाएं विराजमान हैं.

माँ दुर्गा की प्रतिमा का विराजमान होना
हालांकि, टिकीटोरिया मंदिर में जो सिंहासन आज मौजूद है, वह दरअसल राम-जानकी की प्रतिमाओं के लिए ही बनाया गया था. यह त्रिमूर्ति सिंहासन प्राचीन काल से ही मंदिर में रखा गया था, लेकिन प्रतिमाओं की स्थापना नहीं हो सकी. इस सिंहासन पर बाद में माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दी गई, जो आज भी यहाँ विराजमान हैं.

माँ दुर्गा के साथ यहाँ माँ सरस्वती की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं. मंदिर की शिखर पर प्राकृतिक समृद्धि और भक्ति का माहौल इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाता है. नवरात्रि के दौरान यहाँ हजारों भक्त माँ दुर्गा के दर्शन करने आते हैं, और पूरे साल यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
टिकीटोरिया का सिंहवाहिनी माता मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सागर के सांस्कृतिक वैभव का भी प्रतीक है. यह मंदिर वर्षों से लोगों की आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है.

आज यह मंदिर दिन-ब-दिन विस्तार हो रहा है और यहाँ भक्तों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है. इस मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व इसे सागर का एक प्रमुख स्थल बनाता है, जहाँ न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दूर-दूर से भी श्रद्धालु आते हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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