गाजीपुर की 132 साल पुरानी जलेबी की दुकान, शहर की खाद्य परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है. यह दुकान अपनी अनोखी और पारंपरिक जलेबी के लिए जानी जाती है, जिसे लालजी और उनके परिवार की तीन पीढ़ियां बनाती आ रही हैं. इस दुकान की खासियत यह है कि यहां जलेबी बनाने में कभी भी रिफाइंड तेल का उपयोग नहीं किया गया है, जो इसे और भी स्पेशल बनाता है. यह परंपरा और स्वाद पूरे प्रदेश में मशहूर हो चुके हैं, और यहां की जलेबी स्थानीय निवासियों के साथ-साथ पर्यटकों को भी आकर्षित करती है.
लालजी का कहना है कि वे जलेबी बनाते समय हमेशा स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं. इस जलेबी की खास बात यह है कि यह हल्की पीली होती है और अधिक तली हुई या ज्यादा मीठी नहीं होती. रिफाइंड तेल के स्थान पर पारंपरिक तरीके से जलेबी बनाई जाती है, जिससे इसका स्वाद तो लाजवाब होता ही है, साथ ही यह सेहत के लिए भी नुकसानदायक नहीं होती. लालजी का ध्यान इस बात पर होता है कि हर जलेबी कुरकुरी और स्वादिष्ट हो, जिससे इसे खाने वाले को मजा आए और स्वास्थ्य भी ठीक रहे.
दूर-दूर के लोग चखने आते हैं जलेबी
गाजीपुर की यह जलेबी 10 से 12 रुपए में 100 ग्राम के हिसाब से मिलती है, जो कि बेहद किफायती है. सुबह 7:00 से 10:00 बजे के बीच स्टिमर घाट के पास यह जलेबी बिकती है, और दूर-दूर से लोग इसका स्वाद चखने आते हैं. लालजी बताते हैं कि पहले इस जलेबी की कीमत एक पैसा हुआ करती थी, और अब यह करीब 16 रुपए के आस-पास है. इसके बावजूद, ग्राहकों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है. यहां की जलेबी का अनोखा स्वाद और लंबे समय से चली आ रही परंपरा इसे खास बनाते हैं.
सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है लालजी की जलेबी
गाजीपुर की यह जलेबी न सिर्फ एक मिठाई है, बल्कि यह शहर की सांस्कृतिक धरोहर और परंपरा का प्रतीक भी है. तीन पीढ़ियों से चली आ रही इस मिठाई की दुकान गाजीपुर की पहचान बन चुकी है, और इसका अनोखा स्वाद लोगों के दिलों में बसा हुआ है.
FIRST PUBLISHED : October 18, 2024, 10:17 IST
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