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Karwa Chauth 2024: मिट्टी के करवे से क्यों दिया जाता है करवा चौथ पर अर्घ्य? हरिद्वार के ज्योतिषी से जानें सब


हरिद्वार. कल देश भर करवा चौथ का व्रत मनाया जाएगा. सुहागिन महिलाओं हर साल करवा चौथ का बेसब्री से इंतजार करती हैं. अखंड सौभाग्य, पति की लंबी आयु और बेहतर जीवन के लिए सुहागिन महिलाएं हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ पर निर्जला व्रत रखती हैं. इस व्रत में महिलाएं दिनभर उपवास रखते हुए रात को चंद्रमा के निकलने पर दर्शन और पूजन करते हुए अपना व्रत खोलती हैं. करवा चौथ पर चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी के करवे का इस्तेमाल किया जाता है. क्या आप जानते हैं कि चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी के करवे का इस्तेमाल क्यों होता है? अगर नहीं पता है, तो आइए जानते हैं इसकी वजह.

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 19 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी. वहीं इसका समापन 20 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर होगा. उदया तिथि के आधार पर इस साल करवा चौथ का व्रत रविवार, 20 अक्टूबर को रखा जाएगा. 20 अक्टूबर की सुबह को सूर्योदय 6:25 मिनट पर होगा और शाम को चंद्रमा 7:54 मिनट पर उदय होंगे. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ पर जब चंद्रमा उदय होते है तो उन्हें अर्घ्य देकर सुहागन महिलाएं अपना व्रत पूरा करती हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करवा चौथ पर मिट्टी के करवे का महत्व बताया गया है. पुराने जमाने से ही करवा चौथ के दिन मिट्टी के करवे से चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है और करवा चौथ का संपूर्ण फल प्राप्त होता है.

पंचतत्व से बना होता है मिट्टी का करवा 
हरिद्वार के ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि करवा यानी मिट्टी के एक पात्र को कहा जाता है जिसमें एक नली बनी होती है. करवे में जल भरकर इसी नली से चंद्रमा को अर्घ्य देने का महत्व होता है. चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति की पूजा की जाती है जिसके बाद व्रत पूरा हो जाता है. पुराने समय से ही मिट्टी के करवे से चंद्रमा को अर्घ्य देना इसलिए शुभ माना जाता जाता है क्योंकि शास्त्रों में मिट्टी को पवित्रता का प्रतीक बताया गया है.

देवी का प्रतीक है करवा
पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि करवे को पानी, आग, मिट्टी, वायु और पृथ्वी से बनाया जाता हैं. इसे बनाने के लिए मिट्टी को पानी में भिगोकर रखते हैं, जिसके बाद इसे करवे के आकार में बनाया जाता है. इसके बाद यह हवा में पृथ्वी पर सूखने के लिए रखा जाता है और आखिर में इसे अग्नि (आग) में पकाया जाता है, जिससे यह पवित्र हो जाता है. मान्यता है कि यह सभी तत्व दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए प्रार्थना करते हैं. यह करवा मटके की तरह होता है. करवा चौथ के शुभ अवसर पर करवे को देवी का प्रतीक मानकर सुहागिन महिलाएं पूजा-अर्चना करती हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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