ऋषिकेश: दीपावली, जिसे अमावस्या का त्योहार भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है. इस पर्व पर विशेष रूप से माता लक्ष्मी की पूजा का महत्व होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन हमेशा रात में या सूर्यास्त के बाद ही क्यों किया जाता है? इसके पीछे कई धार्मिक, पौराणिक और ज्योतिषीय मान्यताएं हैं, जो इस परंपरा को और भी खास बनाती हैं.
दीपावली के दिन रात में पूजा करना अधिक शुभ
Bharat.one के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे शुभ समय प्रदोष काल माना गया है, जो सूर्यास्त के तुरंत बाद का समय होता है. ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी रात्रि में धरती पर भ्रमण करती हैं और उसी समय पूजा करने से वे प्रसन्न होकर भक्तों को समृद्धि और सुख का आशीर्वाद देती हैं. इसलिए दीपावली के दिन रात में पूजा करना अधिक शुभ और फलदायी माना जाता है.
दिवाली की रात में पूजा करने का महत्व
दिवाली के दिन अमावस्या का समय होता है, जब चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता और चारों ओर अंधकार फैल जाता है. इस अंधकार के बीच जब घरों में दीप जलाए जाते हैं, तो यह माता लक्ष्मी का स्वागत करने का प्रतीक होता है. ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, लक्ष्मी जी को ‘ज्योति’ का प्रतीक माना गया है, और रात्रि के समय दीप जलाने से यह संकेत मिलता है कि हम अपने जीवन से अज्ञानता और अंधकार को दूर कर रहे हैं और ज्ञान, समृद्धि और प्रकाश को आमंत्रित कर रहे हैं. इसके अलावा पौराणिक मान्यता है कि दिवाली के दिन ही भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को समुद्र मंथन से प्रकट होने के बाद अंधकार में खोजा था. इसलिए इस दिन अंधकार में दीप जलाने और लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है. यही वजह है कि दीपावली पर रात्रि के समय पूजा को अत्यंत शुभ और आवश्यक माना जाता है.
FIRST PUBLISHED : October 22, 2024, 07:09 IST
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