भरतपुर : भरतपुर के लोक-जीवन में एकादशी का विशेष महत्व है. खासकर देवउठनी एकादशी का दिन एक ऐसा पावन अवसर होता है. चार महीने की निद्रा के बाद देवता देवउठनी एकादशी को जागते हैं. इस अवसर पर एक खास परंपरा निभाई जाती है, जिसमें मिट्टी के बने बर्तन का उपयोग किया जाता है, जिसे सकोरा कहा जाता है. यह परंपरा भरतपुर में पीढ़ियों से चली आ रही है और हर साल इसे पूरे भक्ति-भाव के साथ निभाया जाता है.
देवउठनी एकादशी के दिन इस सकोरे का प्रयोग देवताओं को जगाने के लिए किया जाता है. यह सकोरा जो स्थानीय कुंभकारों द्वारा तैयार किया जाता है. आम मिट्टी के बर्तनों से अलग होता है. इसे बनाने के लिए खास मिट्टी का चुनाव किया जाता है और इसमें एक विशेष प्रकार की शुद्धता बनाए रखने का पूरा ध्यान रखा जाता है. कुंभकार इसे बड़ी ही सादगी और भक्ति के साथ तैयार करते हैं. ताकि यह विशेष पर्व के योग्य बन सके.
मिट्टी के बने हुए सकोरे से घर की महिलाएं इस सकोरे के नीचे दीपक जलती हैं और देवता अपनी निद्रा से उठते हैं. उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं. देवों को जगाने के बाद ही शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत की अनुमति मिलती है. विशेषकर इस मिट्टी के बने हुए बर्तन का देवउठानी एकादशी के दिन ही इस्तेमाल होता है. यह मिट्टी से बने हुए सकोरे बाजार में इस दिन काफी अधिक मात्रा में बिकते हैं.
भरतपुर की इस खास परंपरा में सकोरे का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है. यह बर्तन न केवल एक साधारण मिट्टी का पात्र है. बल्कि यह हमारी संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी है. लोगों का मानना है कि देवताओं को जगाने के लिए इस सकोरे से दीपक जलया जाता और इसके नीचे रखते हैं. इस प्रकार भरतपुर में देवउठनी एकादशी का यह पावन पर्व लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ता है और सकोरे के माध्यम से वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को हर साल नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य करते हैं.
FIRST PUBLISHED : November 12, 2024, 13:12 IST