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Explainer: अगर मंदिर के दानपात्र में गिर जाए आपका मोबाइल तो वापस होगा या नहीं, क्या कानून



हाइलाइट्स

तमिलनाडु के एक मंदिर ने हुंडियाल में गिरे आईफोन को लौटाने से मना कर दियाधार्मिक दान कानून भी कहते हैं कि दान में दी गई चीज वापस पाना मुश्किल साउथ इंडिया के मंदिरों में किया जाने वाले दान एक खास कानून के जरिए रेगुलेट

मंदिर की हुंडियाल में गिरे आईफोन का मालिक कौन है? तमिलनाडु में हुंडियाल में डाले गए रुपए-पैसे और चीजों को देवता की संपत्ति माना जाता है. हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) अधिनियम के अनुसार कोई भी वस्तु – चाहे वह सोने या चांदी के आभूषण हों या किसी भी मंदिर में हुंडियाल में जमा की गई हो , वो देवता की होगी. इस बिना पर मंदिर में गिरे उस आईफोन को वापस करने से मना कर दिया. अब हम ये जानेंगे कि भारत में धार्मिक दान का क्या कानून है, क्या इसे वापस भी लिया जा सकता है.

इस बारे में कानून के बारे में जानने से पहले ये जान लें कि तमिलनाडु के मंदिर में हुआ क्या है. मामला 18 अगस्त के दोपहर का है. जगह है तमिलनाडु का थिरुपुरुर का अरुलमिगु कंदस्वामी मंदिर. जहां के हुंडियाल में अंबात्तुर निवासी दिनेश का आईफोन गिर गया. एक महीने बाद उन्होंने मंदिर को एक पत्र दिया कि उनका फोन हुंडियाल में गिर गया है, इसको वापस कर दिया जाए.

हुंडियाल 19 दिसंबर को खोला गया. इसमें दिनेश का आईफोन मिला लेकिन मंदिर ने इसको देने से मना कर दिया. कहा गया कि ये अब देवता की संपत्ति है. मंदिर के अधिकारियों ने उनसे कहा कि अगर वे चाहें तो फोन से डेटा कॉपी कर लें. अब जानते हैं कि भारत में दान (Gift) से संबंधित कानून और नियम क्या हैं. दान दो तरह के हैं – एक दान धार्मिक दान के तहत आता है और दूसरा किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति बिना आर्थिक लाभ के किसी और को सौंपना. वैसे आपको बता दें कि साउथ इंडिया के मंदिरों में किया जाने वाले दान भी एक खास कानून के जरिए रेगुलेट होता है.

सवाल- भारत में मंदिर में किए गए दान को किस कानून के तहत रेगुलेट किया जाता है?
– भारत में मंदिर या धार्मिक स्थानों पर किए जाने वाले दान को कई कानूनों के तहत रेगुलेट किया जाता है.
1. धार्मिक और चैरिटेबल ट्रस्ट अधिनियम (Religious and Charitable Trusts Act, 1920) – यह अधिनियम धार्मिक और चैरिटेबल ट्रस्टों की स्थापना, प्रबंधन, और उनके धन के उपयोग को नियंत्रित करता है. मंदिरों को मिलने वाले दान को इस अधिनियम के तहत देखा जाता है कि वह दान उचित और धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग हो.
2. हिंदू धार्मिक और चैरिटेबल बंदोबस्ती अधिनियम (Hindu Religious and Charitable Endowments Act, 1951) – यह अधिनियम मुख्य रूप से दक्षिण भारत के मंदिरों पर लागू होता है. इसके तहत मंदिरों के प्रबंधन और उनके धन का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारें बोर्ड या ट्रस्ट स्थापित करती हैं. तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मंदिरों का प्रबंधन राज्य सरकार के नियंत्रण में होता है.
3. भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 (Indian Trusts Act, 1882) – यदि मंदिर एक पंजीकृत ट्रस्ट के रूप में कार्य करता है, तो उसे इस अधिनियम के तहत दान और अन्य संपत्तियों का प्रबंधन करना होता है.
4. मंदिर विशेष कानून (Temple-Specific Laws) – कुछ मंदिरों के लिए अलग-अलग विशेष कानून बनाए गए हैं, जैसे – जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1955: पुरी के जगन्नाथ मंदिर से संबंधित, श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर (केरल) -इस मंदिर के प्रबंधन और धन के उपयोग को अदालत द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
5. विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 (Foreign Contribution Regulation Act, 2010 – FCRA) – यदि मंदिर को विदेशी स्रोतों से दान मिलता है, तो इसे एफसीआरए के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य है.
मंदिर में किए गए दान का उपयोग और प्रबंधन मुख्य रूप से धार्मिक ट्रस्टों और राज्य सरकारों के नियामक ढांचे के तहत होता है. सुनिश्चित किया जाता है कि दान का उपयोग धार्मिक, चैरिटेबल, और समाज कल्याण के उद्देश्यों के लिए हो.

सवाल – भारत का संविधान भी क्या इस बारे में कुछ कहता है?
– भारतीय संविधान का अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं को अपने मामलों का स्वतंत्र रूप से प्रबंधन करने का अधिकार देता है, बशर्ते वे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ न हों.

सवाल – क्या मंदिरों में दान की गई रकम या वस्तु वापस लेने का अधिकार दानदाता के पास होता है या नहीं?
– हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) अधिनियम के तहत, आमतौर पर मंदिरों में दिए गए दान को वापस लेना संभव नहीं होता. इसकी कई वजहें हैं
– हिंदू धर्म में दान को भगवान को अर्पित किया जाता है. एक बार दान दे देने के बाद, इसे वापस लेना धार्मिक दृष्टिकोण से अनुचित माना जाता है.
– कई राज्यों में HR&CE अधिनियम के तहत स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि मंदिर में दी गई दान राशि को वापस नहीं किया जा सकता है. यह माना जाता है कि यह धन अब मंदिर की संपत्ति बन चुका है. इसका उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए किया जाएगा.

सवाल – अगर कोई वस्तु या संपत्ति गलती से दान दे दी गई हो या हुंडियाल में गिर गई हो तो क्या इसे वापस ले सकते हैं?
– कुछ विशेष परिस्थितियों में दान वापस लिया जा सकता है.
– गलती से दिया गया दान: अगर कोई व्यक्ति गलती से बहुत अधिक राशि दान कर देता है और इसे वापस लेना चाहता है, तो कुछ मामलों में मंदिर प्रशासन इस पर विचार कर सकता है.
– यही बात हुंडियाल में गलती से गिरी वस्तुओं पर भी लागू होती है लेकिन ये फैसला पूरी तरह से मंदिर प्रशासन के विवेक पर निर्भर करता है.
– अगर आपने मंदिर में दान दिया है और आप उसे वापस लेना चाहते हैं, तो आपको मंदिर प्रशासन से संपर्क करना चाहिए.

सवाल – अगर हुंडियाल में गलती से कोई कीमती संपत्ति या आईफोन गिर गया हो तो मंदिर के वापस नहीं करने की स्थिति में क्या विकल्प हो सकता है?
– ऐस में अगर वैध कारण हो जिसके आधार पर दान वापस लेने की मांग की जा रही हो, तो न्यायालय में मामला दायर किया जा सकता है. वैसे काफी हद तक ये मंदिर प्रशासन के विवेक पर भी निर्भर करता है कि वो इसमें क्या फैसला लेता है.

सवाल – कर कटौती के लिए दान किस कानून के तहत होता है, क्या ये भी वापस मांगा जा सकता है?
– आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 जी के तहत, व्यक्ति और निगम निर्दिष्ट धर्मार्थ संस्थानों और राहत कोषों को किए गए दान के लिए कर कटौती का दावा कर सकते हैं. कटौती संगठन के आधार पर दान की गई राशि का 100% या 50% तक हो सकती है. हालांकि इन कटौतियों को लागू करने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करना होगा.
यह अधिनियम कंपनियों को केंद्र सरकार की मंजूरी से गांधी राष्ट्रीय स्मारक निधि जैसे राष्ट्रीय कोषों में दान करने की अनुमति देता है.

सवाल – अगर आपने आयकर अधिनियम 1961 में दान किया और इसे वापस लेना चाहते हैं तो कैसे किया जा सकता है?
– दान वापस लेना काफी हद तक प्राप्तकर्ता संगठन की नीतियों पर निर्भर करता है. कई संगठनों की विशिष्ट वापसी नीतियां होती हैं. उदाहरण के लिए, कुछ संगठन दान किए जाने के बाद एक निश्चित अवधि (जैसे, 15 दिन) के भीतर अनुरोध किए जाने पर वापसी की अनुमति दे सकते हैं. हालांक यदि उस दान के लिए कर छूट प्रमाणपत्र जारी किया गया है, तो वे वापसी के लिए बाध्य नहीं हैं.
आम तौर पर एक बार जब दान किया जाता है और किसी चैरिटी द्वारा स्वीकार किया जाता है, तो इसे स्वैच्छिक योगदान माना जाता है. इसे तब तक वापस नहीं किया जा सकता जब तक कि संगठन की नीतियों में स्पष्ट रूप से न कहा गया हो.

सवाल – संपत्ति हस्तांतरण संबंधी दान क्या होता है और ये किस कानून के तहत होता है, क्या इसे भी वापस लिया जा सकता है?
– ये दान भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 और संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) के तहत आते हैं.
– दान का मतलब किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति (चल या अचल) को बिना किसी आर्थिक लाभ के दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छा से सौंपना है
– दान संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 122 के तहत, तभी मान्य होता है जब वह स्वेच्छा से किया गया हो. दानदाता ने बिना किसी दबाव, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव के दान किया हो.
– दान को वापस लेने की अनुमति कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है
– अगर दानदाता साबित कर सके दान धोखाधड़ी, दबाव या अनुचित प्रभाव के तहत किया गया था, तो इसे अदालत के माध्यम से रद्द किया जा सकता है
– यदि दान के समय दोनों पक्षों में यह समझौता हो कि कुछ विशेष परिस्थितियों में दान वापस लिया जा सकता है, तो ऐसा संभव है.
– यदि प्राप्तकर्ता ने दानदाता के साथ विश्वासघात किया हो या उनके प्रति कर्तव्यों का उल्लंघन किया हो, तो दान वापस लिया जा सकता है

सवाल – कब अचल संपत्ति का दान भी वापस नहीं लिया जा सकता?
– यदि किसी अचल संपत्ति का दान किया गया है और वह कानूनी रूप से रजिस्टर्ड कर दिया गया हो तो इसे आसानी से वापस लेना कठिन होता है. सामान्य तौर पर एक बार दान पूर्ण हो जाने के बाद (यानि जब स्वामित्व और अधिकार पूरी तरह से हस्तांतरित हो जाएं), तो इसे वापस नहीं लिया जा सकता. यह न्यायिक और नैतिक दृष्टि से दोनों ही मान्य है.

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