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कब और क्यों माता सती ने ली भगवान राम की परीक्षा? पढ़ें पौराणिक कथा, इसी प्रसंग में छिपा है सती के अग्निदाह का कारण भी



हाइलाइट्स

माता सती ने रूप बदल कर भगवान राम की परीक्षा ली.माता सीता के रूप में भी भगवान राम ने माता सती को पहचान लिया.

Mata Sati Ne Li Bhagwan Ram ki Pariksha : शक एक ऐसी बीमारी है, जो अच्छे से अच्छे रिश्ते को भी तोड़ देती है. इस बीमारी का ना तो कोई इलाज है और ना ही कोई दवा. परंतु ऐसा नहीं कि संशय केवल मनुष्यों को होता है. इस बीमारी से तो देवी-देवता और दिव्य पुरुष भी अछूते नहीं हैं. क्या आप जानते हैं वह प्रसंग जब माता सती को हो गया था भगवान श्री राम पर संशय…? अगर नहीं तो आइए बताते है आपको यह अद्भुत प्रसंग. जिसके बारे में हमें विस्तार से बता रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

कब हुई ये घटना?
बात उस समय की है जब रावण ने माता सीता का हरण किया था और भगवान राम और लक्ष्मण उन्हें ढूंढते हुए दर दर भटक रहें थे. उसी समय भगवान शिव और माता सती का काकभुशुण्डि जी से श्री राम कथा सुनकर कैलाश वापस लौट रहे थे, तभी रास्ते में भगवान शिव को प्रभु श्री राम के दर्शन हुए. राम उस समय लीलावश माता सीता के वियोग में रो रहे थें, जिसके कारण उनकी लीला में विघ्न ना बनने की इच्छा से उन्होंने दूर से ही अपने आराध्य भगवान राम को प्रणाम किया.

जब माता सती को हुआ भगवान राम पर संशय
यह देख माता सती ने उनसे पूछा, “हे नाथ! ऐसा कौन है जिसे स्वयं आप सिर झुकाकर प्रणाम कर रहे हैं…?” इस पर भगवान शिव ने उत्तर दिया, “देवी! मैं अपने इष्ट प्रभु राम को प्रणाम कर रहा हूं, जिनकी कथा अभी अभी आप और मैं श्रवण करके आ रहे हैं”. तब माता सती ने भगवान राम को देखा और उन्हें सीता जी के वियोग में ऐसे रोता-बिलखता और दर-दर भटकता देख उन्हें उनपर संदेह हो गया कि सच में वह भगवान हैं भी या नहीं.

जब भोलेनाथ से भी नहीं मानी सती
यह संदेह उन्होंने भगवान शिव के सामने प्रस्तुत किया जिसे सुन बाबा भोलेनाथ ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें कुछ समझ ना आया, तब भोलेनाथ ने माता सती को उनके विश्वास के लिए भगवान राम की परीक्षा लेने को कहा, और साथ ही हिदायत दी कि परीक्षा विवेकपूर्ण तरीके से ही लें अन्यथा नहीं.

जब सती की परीक्षा हुई विफल
तब माता सती भगवान राम की परीक्षा लेने, उनकी पत्नी सीता का रूप धारण करके भगवान राम के सामने पहुंच गईं, उन्हें सीता स्वरूप में देख एक बार को भैया लक्ष्मण भी उन्हें सीता समझ बैठे लेकिन वे कुछ बोले नहीं. तब भगवान राम ने सीता के रूप में आई सती को देखकर प्रणाम किया और बोले, ” हे माता! दशरथ पुत्र राम आपको प्रणाम करता है, परंतु माता आज आप अकेले भ्रमण करने कैसे आ गईं? भूतभावन भोलेनाथ को साथ क्यों नहीं लाई…?”

भगवान ने कराए अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन
यह सुन तो माता के होश ही उड़ गए, उनका शक भी चकनाचुर हो गया, तब उन्हें तृप्त करने के लिए भगवान राम ने उन्हें अपना श्रीहरि रूप दिखाया. माता सती कुछ कहने के काबिल ही ना रहीं और भागी भागी वापस कैलाश आ गईं.

शिव को पता लगा माता सती का झूठ
जब भगवान शिव ने उनसे पूछा कि उन्होंने प्रभु राम की परीक्षा कैसे ली? तो देवी सती ने उनसे झूठ बोलते हुए कहा कि उन्होंने तो परीक्षा ली ही नहीं, वे तो बस उन्हें प्रणाम करके वापस आ गईं. यह सुन भगवान शिव को उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने अपने नेत्र बंद किए और उन्हें सारे प्रसंग का पता लग गया. मान्यता है कि इसके बाद भगवान शिव ने सती को इस शरीर में ना अपनाने का संकल्प लिया जिसके कारण सती ने अग्निदाह करके, माता पार्वती के रूप में जन्म ले दोबारा भगवान शिव से ही विवाह किया.

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