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Saraswati Nadi: सरस्वती नदी का क्या है रहस्य?, क्या आज भी रेगिस्तान में है या फिर हो गई हैं पूरी तरह से विलुप्त


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Saraswati Nadi: सरस्वती नदी का रहस्य आज भी अनसुलझा है. वैज्ञानिक और पुरातात्विक शोधों से इसके अस्तित्व के प्रमाण मिले हैं लेकिन इसके पूर्ण रूप से विलुप्त होने के कारणों पर अभी भी बहस जारी है.

सरस्वती नदी का क्या है रहस्य?, क्या आज भी रेगिस्तान में बहती हैं

सरस्वती नदी

Saraswati Nadi: हिंदू धर्म में नदियों का एक विशेष स्थान है. उन्हें जीवनदायिनी और पवित्र माना जाता है. गंगा, यमुना, नर्मदा की तरह ही सरस्वती नदी का भी अत्यंत महत्व है. प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को त्रिवेणी संगम कहा जाता है, जहां महाकुंभ के दौरान स्नान करने से जन्मों के पाप धुलने की मान्यता है. लेकिन जहां गंगा और यमुना प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती हैं वहीं सरस्वती नदी अदृश्य है. यह प्रश्न उठता है कि आखिर सरस्वती नदी कैसे लुप्त हो गई? क्या वह आज भी थार रेगिस्तान के नीचे बह रही है?

वेदों में सरस्वती का गौरव:

वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार पृथ्वी पर नदियों की कहानी सरस्वती से ही शुरू होती है. ऋग्वेद और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है. ऋग्वेद के नदी सूक्त में कई नदियों का वर्णन है लेकिन एक सूक्त में सरस्वती को ‘नदीतमा’ कहा गया है जिसका अर्थ है ‘नदियों में सर्वश्रेष्ठ और पवित्रतम’. ऋग्वेद में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती हुई बताया गया है.

धार्मिक मान्यताओं में सरस्वती नदी को गंगा के समान ही पवित्र माना जाता है. यह नदी सदियों से हमारी सभ्यता और विरासत का अभिन्न अंग रही है. शास्त्रों की विरासत को संजोए रखने वाली यह वही नदी है जिसके किनारे प्राचीन सभ्यता का उदय हुआ.

सरस्वती का विलुप्त होना:

सरस्वती नदी का उद्गम हिमालय से माना जाता है लेकिन इसके निशान गुजरात, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान तक मिलते हैं. आश्चर्य की बात है कि इतनी विशाल नदी आज कुछ स्थानों पर केवल एक पतली धारा के रूप में दिखाई देती है. सरस्वती नदी के विलुप्त होने का मुख्य कारण भूगर्भीय बदलाव माना जाता है. कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सरस्वती नदी धरती के नीचे बहती है. थार के रेगिस्तान में हुई खोजों के दौरान मिली नदी को सरस्वती नदी का ही अवशेष माना जाता है.

रामायण में भी सरस्वती का उल्लेख:

वाल्मीकि रामायण में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है. जब भरत कैकय देश से अयोध्या लौट रहे थे तब उनके मार्ग में सरस्वती और गंगा नदियों को पार करने का वर्णन है:

“सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च,
उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्।”

श्राप की कथा:

सरस्वती नदी के विलुप्त होने से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है. कहा जाता है कि महाभारत काल में सरस्वती नदी को दुर्वासा ऋषि ने श्राप दिया था कि वह कलयुग के अंत तक लुप्त रहेंगी और कल्कि अवतार के बाद ही उनका पुन: पृथ्वी पर आगमन होगा. यह कथा प्रतीकात्मक रूप से समय के साथ होने वाले परिवर्तनों और प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव को दर्शाती है.

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सरस्वती नदी का महत्व आज भी अक्षुण्ण है. यह हमारी प्राचीन विरासत और आस्था का प्रतीक है. भले ही यह नदी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई न देती हो लेकिन इसकी पवित्रता और महिमा आज भी हमारे हृदय में बसी हुई है.

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