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प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद मौनी महाराज ने भू समाधि ली, जानें हिंदू धर्म में भू समाधि की विधि और महत्व


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Hindu funeral practices : प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद मौनी महाराज ने भू समाधि ली. हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार की विभिन्न विधियां हैं जैसे जल, अग्नि और भू संस्कार. जानिए भू संस्कार के बारे में.

प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद मौनी महाराज ने भू समाधि ली

मौनी महाराज भू समाधि.

हाइलाइट्स

  • प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद मौनी महाराज ने भू समाधि ली.
  • मौनी महाराज ने मृत आत्माओं की शांति के लिए भू समाधि ली.
  • हिंदू धर्म में भू समाधि एक अंतिम संस्कार विधि है.

Hindu funeral practices : इस संसार में मृत्यु सबसे अटल सत्य होता है. एक न एक दिन प्रत्येक व्यक्ति को मर कर ईश्वर की शरण में जाना ही होता है. मृत्यु के बाद व्यक्ति के शरीर को अंतिम संस्कार किया जाता है. अंतिम संस्कार करने की हिंदू धर्म में कई विधियां है. जैसे अग्नि संस्कार, जल संस्कार, और भू संस्कार, मामीकरण, गुफा में रखना और गिद्ध भोज. एक ताजा मामले में प्रयागराज कुंभ में भगदड़ हुई उस भगदड़ से क्षुब्ध होकर वहां मौजूद एक मौनी महाराज ने अस्थायी रूप से स्वयं को भू समाधि दे दी थी. मृतकों की आत्मशांति और मोक्ष की कामना के लिये मौनी महाराज ने स्वयं को एक गहरे गड्ढे में अल्पकाल के लिये समाधि दे दी. आइए विस्तार से जानते हैं की अंतिम संस्कार में कौन सी विधि अपनाना श्रेष्ठ होता है.

जल संस्कार : ऐसा कोई भी जातक जिसकी उम्र 27 माह से कम है. यदि वह किसी गंगा तीर्थ क्षेत्र के आसपास रहता है तो उसे गंगा नदी में जल प्रवाह कर देना चाहिए. संन्यासियों को भी किसी भी महानदी में जल समाधि देनी चाहिए. गरुण पुराण में संन्यासियों के लिए मृत्यु के पश्चात जल समाधि लेना बताई गई है.

अग्नि संस्कार : ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसका विवाह हो गया हो ऐसे जातक की मृत्यु हो जाने पर उसको अग्निदाह कर देना चाहिए. 27 माह से अधिक उम्र के बच्चे की यदि मृत्यु होती है तो उसका भी अग्नि दास संस्कार किया जाना चाहिए तत्पश्चात उसकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर देना चाहिए.

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भू संस्कार : ऐसा कोई भी जातक यदि किसी संक्रामक बीमारी जैसे कुछ इत्यादि से मृत्यु हुई हो तो उसके शरीर को तीन दिन तक भू समाधि देकर चौथे दिन जल प्रवाह या अग्नि दाह कर देना चाहिए. मैं तो शरीर के लिए यह व्यवस्था निर्णय सिंधुकार में बताई गई है.

हंसं परमहंसं च कुटीचकबहूदकौ।
एतान् सन्यासिनस्तार्क्ष्य पृथिव्यां स्थापयेन्मृतान्।।
गंगादीनामभावे हि पृथिव्यां स्थापनं स्मृतम्।
यत्र सन्ति महा नाद्यस्तदा तास्वेव निक्षिपेत्।।

हंस परमहंस कुटी चक्र और बहुदक भेद से जो सन्यासी होते हैं. उन्हें जल समाधि या जल की व्यवस्था न होने पर भू समाधि देने का विधान है.

अभी हाल ही में एक ताजा मामले में प्रयागराज महाकुंभ में मची भगदड़ से शुद्ध होकर मौनी महाराज ने भू समाधि ले ली. यह भू समाधि आंशिक रूप से किया गया कृत्य है. इससे पहले भी मौनी महाराज कई बार भू समाधि ले चुके हैं. प्रयाग महाकुम्भ में दुर्गम घटना पर वह भू समाधि लेकर ईश्वर से क्षमा याचना एवं मृत आत्माओं की शांति के लिये प्रार्थना करने के उद्देश्य से भू समाधि ली गयी है.

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प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद मौनी महाराज ने भू समाधि ली

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