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Mamta Kulkarni Spiritual Journey: बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी ने प्रयागराज महाकुम्भ में किन्नर अखाड़ा से दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला किया, लेकिन विरोध के बाद निष्कासित कर दी गईं.

हाइलाइट्स
- ममता कुलकर्णी बनीं साध्वी, किन्नर अखाड़ा से निष्कासित.
- महामंडलेश्वर बनने पर भारी विरोध के बाद निष्कासन.
- 23 वर्षों की तपस्या के बाद साध्वी बनने का फैसला.
Mamta Kulkarni Spiritual Journey : भारत देश में समय-समय पर लोगों ने अपने ग्राहक जीवन से संन्यास लेकर साधु-सन्यासी बनने का फैसला किया है. अभी हाल ही में बॉलीबुड की मशहूर एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी ने प्रयागराज महाकुम्भ में किन्नर अखाडा के सानिध्य में महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी से दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला किया. आईए जानते हैं संन्यास लेने के लिए क्या नियम होते हैं.
विरोध पर किया गया निष्कासित : सबसे पहले संन्यास लेने के लिए हमें किसी एक ऐसे व्यक्ति की खोज करनी होती है जिससे हम दीक्षा लेकर सन्यास ले सकते हैं. केवल गुरु ही किसी व्यक्ति को सन्यास दीक्षा दे सकते हैं. सन्यास लेना बहुत आसान नहीं होता क्योंकि सन्यासी बनने के बाद व्यक्ति को सभी तरह के भौतिक वित्तीय सांसारिक मोह माया का त्याग करना पड़ता है. और अपना जीवन पूर्ण रूप से अपने इष्ट देव की सेवा पूजा में गुजारना पड़ता है. संन्यास लेने के बाद अपने परिवार और सभी परिजनों रिश्ते नातों का भी त्याग करना पड़ता है. संन्यासियों को एक समय भोजन करना चाहिए एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. सन्यासी अपना भोजन या तो मांग कर खाते हैं अथवा स्वयं बनाकर. संन्यासियों को जमीन पर सोना होता है. किसी भी एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं रह सकते हैं संन्यासी अथवा किसी मठ-आश्रम आदि का सहारा लेना पड़ता है.
महिलाओं के सन्यास का नियम नहीं : ऐसे तो महिलाओं को संन्यास नहीं लेना चाहिए लेकिन इस आधुनिक युग में महिलाओं और पुरुषों में कोई खास अंतर नहीं बचा है महिलाएं पुरुषों की हर कार्य में बराबर हिस्सेदार होती है. सन्यासी कई प्रकार के होते हैं जैसे कुटिचक सन्यासी, बहुदक सन्यासी, हंस सन्यासी, परमहंस सन्यासी.संन्यास लेने वाले व्यक्ति को सबसे पहले स्वयं का पिंडदान करना पड़ता है. इसके बाद वह व्यक्ति सांसारिक मोह माया से पूर्ण रूप से अलग हो जाता है. सन्यासी को अपने सिर पर जाता रखनी पड़ती है एवं जानू भी धारण करना होता है. सन्यासी के हाथों में सदैव दंड होना चाहिए. महिला सन्यासी को अपने केस स्वयं उतार कर ही अपना पिंडदान करना पड़ता है.
कैसे लेते हैं सन्यास : किन्नर अखाड़ा में भारी विरोध के बाद ममता कुलकर्णी और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को निष्कासित कर दिया गया. ममता कुलकर्णिका बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, रामदेव बाबा सहित कई संतों ने महामंडलेश्वर बनाने का भारी विरोध किया था. इन लोगों का कहना था कि महामंडलेश्वर किसी को सीधे नहीं बनाया जा सकता.
ममता कुलकर्णी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि उन्होंने साध्वी बनने के लिए 23 वर्षों से बड़ी तपस्या की है उन्होंने 23 वर्षों में एक भी एडल्ट फिल्म भी नहीं देखी. महामंडलेश्वर बनने जैसा उनके मन में कोई भाव नहीं था. किनारा अखाड़ा के आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी के कहने पर उन्होंने महामंडलेश्वर की पदवी स्वीकार की.
February 03, 2025, 08:48 IST
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