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Svarbhanu: देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, तभी उसमें से अमृत निकला. अमृत पाने के लिए दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसमें देवताओं की जीत हुई.

राहु केतु और स्वरभानु
हाइलाइट्स
- स्वरभानु असुर का सिर राहु और धड़ केतु बना.
- राहु-केतु सूर्य और चंद्र से बैर रखते हैं.
- भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर काटा.
Svarbhanu: भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, जिनका मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. कुंडली में अगर ये ग्रह खराब है तो जातक के जीवन पर भारी कष्ट आता है. जिंदगी में उसके काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं. इनकी उत्पत्ति की कहानी समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए हुए संघर्ष से जुड़ी है.
देवता और असुर ने किया था समुद्र मंथन
कथा के अनुसार जब देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तो उसमें से अमृत निकला. इस अमृत को पाने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया. असुरों ने अमृत कलश छीन लिया और उसे पीकर अमर होना चाहते थे.
स्वरभानु असुर
भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को मोहित कर लिया और उनसे अमृत कलश वापस ले लिया. जब वह देवताओं को अमृत पिला रहे थे तो स्वरभानु नाम का एक असुर देवताओं का वेश धारण कर उनके बीच में बैठ गया और अमृत पीने लगा. सूर्य देव और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु को इसकी सूचना दी. भगवान विष्णु ने क्रोधित होकर अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया.
राहु-केतु
हालांकि स्वरभानु ने अमृत की कुछ बूंदें पी ली थी, जिसके कारण वह मरा नहीं. उसका सिर राहु और धड़ केतु के नाम से जाने गया. इस घटना के बाद राहु और केतु सूर्य और चंद्र देव से बैर रखने लगे क्योंकि उन्होंने उनका भेद खोला था. यही कारण है कि राहु और केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्र को ग्रहण लगाते हैं.
यह कहानी राहु और केतु के प्रभाव और उनके सूर्य-चंद्र से संबंधों को दर्शाती है. यह भी बताती है कि छल और कपट से प्राप्त की गई वस्तुएं स्थायी नहीं होतीं.
February 07, 2025, 11:43 IST
कौन था स्वरभानु, जिस पर क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने चलाया था सुदर्शन चक्र?