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Mahabharat Story: कर्ण की इन गलतियों के बाद भी श्रीकृष्ण ने उनके 3 वरदान को किया पूरा, जानिए उनसे जुड़े ये अनसुने किस्से


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Mahabharat Story: कर्ण महाभारत का एक वीर और त्यागी योद्धा था, जिसने जीवनभर संघर्षों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी. उसकी युद्ध कौशल, दानशीलता और मित्रता की मिसाल दी जाती है. हालांकि, कुछ गलत फैसलों के क…और पढ़ें

आखिरी समय में दानवीर कर्ण के वो 3 वरदान जिसे श्रीकृष्ण ने किए पूरे

महाभारत कथा

हाइलाइट्स

  • कर्ण ने जीवनभर संघर्षों का सामना किया.
  • कर्ण को “दानवीर” कहा जाता है.
  • श्रीकृष्ण ने कर्ण की अंतिम इच्छाएं पूरी कीं.

Mahabharat Story: महाभारत में कर्ण का जीवन संघर्ष, त्याग और वीरता की मिसाल है. वह जन्म से ही कठिनाइयों का सामना करता रहा लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी. उसकी युद्ध कौशल, दानशीलता और मित्रता के प्रति समर्पण उसे एक अनोखा योद्धा बनाते हैं. हालांकि, उसने कुछ गलतियां भी की थीं. आइए कर्ण के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानते हैं.

कर्ण और अर्जुन का युद्ध
महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कर्ण आमने-सामने थे. कर्ण जब भी तीर चलाता, अर्जुन का रथ थोड़ा पीछे खिसक जाता लेकिन जब अर्जुन तीर छोड़ता तो कर्ण का रथ और अधिक पीछे हट जाता. अर्जुन को यह देखकर आश्चर्य हुआ और उसने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा. श्रीकृष्ण ने बताया कि अर्जुन के रथ पर स्वयं वे विराजमान हैं, ध्वज पर हनुमान हैं. फिर भी कर्ण के तीर अर्जुन के रथ को हिला पा रहे हैं जो उसकी अद्भुत शक्ति को दर्शाता है.

द्रौपदी के अपमान का समर्थन
राजसभा में जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब कर्ण ने इस कृत्य का विरोध किया. लेकिन कर्ण ने नारी के सम्मान की रक्षा करने के बजाय उल्टा उसका अपमान किया. यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी जो युद्ध का कारण बनी.

विपरीत परिस्थितियों में हार नहीं मानी
कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा था. उसने गुरु परशुराम से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन जब गुरु को उसकी असलियत का पता चला तो उन्होंने उसे श्राप दे दिया कि वह सबसे ज़रूरी समय पर अपनी विद्या भूल जाएगा. इसके बावजूद कर्ण ने हार नहीं मानी और महाभारत के युद्ध में अंत तक लड़ता रहा.

कर्ण का सबसे बड़ा गुण
कर्ण को “दानवीर” कहा जाता है क्योंकि उसने कभी भी किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाया. यहां तक कि अपने कवच और कुंडल भी दे दिए, जिससे उसकी मृत्यु निश्चित हो गई. अंतिम समय में भी उसने श्रीकृष्ण को दान स्वरूप अपना सोने का दांत दे दिया था.

कर्ण की अंतिम इच्छा और श्रीकृष्ण का आशीर्वाद: मृत्यु के समय कर्ण ने श्रीकृष्ण से तीन वरदान मांगे

  • भविष्य में उनके जैसे लोगों के साथ अन्याय न हो.
  • श्रीकृष्ण अगले जन्म में उनके राज्य में जन्म लें.
  • उनका अंतिम संस्कार ऐसा व्यक्ति करे जो पापमुक्त हो.

श्रीकृष्ण ने स्वयं अपनी हथेली पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया जो उनकी महानता को दर्शाता है.

कर्ण की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सही और गलत का चुनाव हमारे हाथ में है. हम सीखना चाहें, तो गलतियों से भी सीख सकते हैं और अपने जीवन को महान बना सकते हैं.

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आखिरी समय में दानवीर कर्ण के वो 3 वरदान जिसे श्रीकृष्ण ने किए पूरे

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