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होली मनाने से पहले लेनी होगी कुलदेवी की परमिशन, राजस्थान की 500 साल पुरानी परंपरा, जानें वजह


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बीकानेर में होली की शुरुआत राजपरिवार की कुलदेवी से अनुमति लेकर होती है. 537 साल पुरानी परंपरा में शाकद्वीपीय समाज गेर निकालता है, जिसमें गुलाल और इत्र से होली का आगाज होता है.

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राजपरिवार

राजपरिवार की कुलदेवी से अनुमति मांगी जाती है 

हाइलाइट्स

  • बीकानेर में होली की शुरुआत कुलदेवी से अनुमति लेकर होती है.
  • 537 साल पुरानी परंपरा में शाकद्वीपीय समाज गेर निकालता है.
  • गुलाल और इत्र से होली का आगाज होता है.

निखिल स्वामी/बीकानेर. बीकानेर अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में फेमस है. यहां होली के कार्यक्रम शुरू करने से पहले राजपरिवार की कुलदेवी से अनुमति ली जाती है, जिसके पश्चात पूरे शहर में उत्साहपूर्वक होली के आयोजन होते हैं. यह अनूठी परंपरा करीब 537 साल से चली आ रही है और शाकद्वीपीय समाज नगर स्थापना के बाद से निरंतर निभाई जा रही है, जिससे बीकानेर की सांस्कृतिक विरासत में चार चांद लगते हैं.

शाकद्वीपीय समाज के पुरुषोत्तम लाल सेवग और पवन शर्मा के अनुसार, शहर के बाहर से एक गेर निकाली जाती है जिसमें पहले भगवान गणेश की पूजा और माता जी के भजन गाए जाते हैं. इस समारोह में हास्य रस के गीत, रसभरा गीत ‘पन्ना’ और बच्चों और बुजुर्गों की भागीदारी देखने को मिलती है. गेर गोगागेट से प्रवेश करते हुए शहर में आती है और फिर इसे दूसरे समाज को सौंप दिया जाता है. इसके पश्चात होली के कार्यक्रम की शुरुआत होती है, और बाद में रम्मत और अन्य समाज की गेर निकाली जाती है.

गुलाल और इत्र से होती है शुरूआत 
बीकानेर रियासत के संस्थापक राव बीकाजी ने नगर स्थापना के बाद शाकद्वीपीय समाज को राजपरिवार की कुलदेवी नागणेचीजी माता को फाग खेलाकर शहर में प्रवेश करने की अनुमति दी थी. तब से, शाकद्वीपीय समाज फाल्गुन सुदी सप्तमी को नागणेचीजी माता को गुलाल और इत्र चढ़ाकर, नागणेचीजी मंदिर से फाग गीत गाते हुए गेर के रूप में प्रवेश करता है. शाम साढ़े 6 बजे समाज की महिला और पुरुष नागणेचीजी मंदिर पहुंचकर रात 7 से 8 बजे तक फाग गीत गाते हैं और इस दौरान गुलाल, फूल और इत्र से मां के साथ फाग खेला जाता है. रात 8 बजे मां की आरती के बाद गुलाल उछालते हुए वे अपने-अपने घरों की ओर रवाना हो जाते हैं. इसके पश्चात, शहर में पांच जगहों पर सामूहिक गोठ होती है और अंत में, रात 11 बजे गोगागेट से गेर के रूप में शहर में प्रवेश करते ही होली का आगाज हो जाता है.

पांच जगह होती है गोठ
शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण समाज के लिए यह दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है. शहर में पांच विभिन्न स्थानों पर सामूहिक गोठ का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्यामोजी वंशज मूंधाड़ा प्रन्यास भवन, हसावतों की तलाई, नाथ सागर में स्थित सूर्य भवन, डागा चौक पर स्थित शिव शक्ति भवन और जसोल्लाई में स्थित जनेश्वर भवन में प्रसाद वितरित किया जाता है. इसके अलावा, चौक स्थित शिव शक्ति सदन में वृंदावन की पार्टी की ओर से प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम से इस दिन की रंगीनता और उल्लास में चार चांद लग जाते हैं.

विभिन्न जगहों से होकर निकलती है गेर
यह गेर नागणेची मंदिर से निकलकर शुरू होता है, यहां पहले समाज के बुजुर्ग और युवा सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके पश्चात, रात 11:30 बजे सभी गोगागेट में एकत्रित होकर फाग गीत गाते हुए गेर के रूप में शहर में प्रवेश करते हैं. इस क्रम में गेर बागड़ी मोहल्ला, भुजिया बाजार, चाय पट्टी, बैदों का बाजार, नाइयों की गली, मरूनायक चौक और चौधरियों की घाटी होते हुए मूंधाड़ा सेवगों के चौक पर संपन्न होता है.

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राजस्थान की 500 साल पुरानी परंपरा, गुलाल और इत्र से खेली जाती है होली, जानें

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