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Ramadan 2025: रोजा खुशहाई बच्चों के पहले रोजे का खास मौका होता है, जिसे परिवार प्यार और खुशी से मनाता है. मौलाना इफराहीम हुसैन के अनुसार, इसका उद्देश्य बच्चों को इस्लामी नियमों से जोड़ना है.

पहला रोजा, पहली इबादत! रोजा खुशहाई के खास मौके पर बच्चों की हौसला अफजाई करता है परिवार.
हाइलाइट्स
- रोजा खुशहाई बच्चों के पहले रोजे का खास मौका है.
- रोजा खुशहाई 7 से 12 साल के बच्चों का किया जाता है.
- इस्लाम में रोजा खुशहाई का धार्मिक महत्व है.
अलीगढ़: इस्लाम में रोजा सिर्फ एक इबादत नहीं, बल्कि आत्मसंयम, तकवा और अल्लाह की नज़दीकी पाने का जरिया भी है. जब कोई बच्चा पहली बार रोजा रखता है, तो इसे रोजा खुशहाई (या रोजा कुशाई) कहा जाता है. यह एक खास मौका होता है, जिसे परिवार के लोग बड़े प्यार और खुशी के साथ मनाते हैं और खुदा का शुक्र अदा करते हैं.
मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन बताते हैं कि रोजा खुशहाई आमतौर पर 7 से 12 साल के बीच के बच्चों का किया जाता है, लेकिन इसमें कोई सख्त उम्र की शर्त नहीं होती. यह इस पर निर्भर करता है कि बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से पहला रोजा रखने के लिए तैयार है या नहीं. इस्लामी परंपरा के अनुसार, बच्चे के पहले रोजे को उसकी जिंदगी का एक अहम दिन माना जाता है, क्योंकि यह उसे इस्लाम के बुनियादी स्तंभों से जोड़ता है.
रोजा खुशहाई का उद्देश्य
मौलाना इफराहीम हुसैन बताते हैं कि रोजा खुशहाई का मुख्य उद्देश्य बच्चे को धीरे-धीरे इस्लामी नियमों और उपवास की आदत डालना होता है. इस दिन परिवार के लोग बच्चे की हौसला अफजाई करते हैं, उसके लिए खास दुआएं की जाती हैं और इफ्तार में उसकी पसंदीदा चीजें बनाई जाती हैं.
कैसे मनाया जाता है यह खास दिन?
कई जगहों पर इस मौके को उत्सव की तरह मनाया जाता है. इस दौरान रिश्तेदार और दोस्त इकट्ठा होते हैं, बच्चे को तोहफे दिए जाते हैं और इस्लामी तालीमात के बारे में बताया जाता है. यह न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण होता है, बल्कि परिवार और समाज के बीच के रिश्तों को भी मजबूत करता है.
इसका धार्मिक महत्व
मौलाना बताते हैं कि रोजा खुशहाई का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह बच्चे के दिल में इबादत और दीन की मोहब्बत पैदा करता है. जब बच्चा खुशी-खुशी पहला रोज़ा रखता है और उसे परिवार से सराहना मिलती है, तो इससे उसे इस्लामी उसूलों पर चलने की प्रेरणा मिलती है.
मौलाना इफराहीम हुसैन कहते हैं कि रोजा खुशहाई सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि यह बच्चे के जीवन में इस्लाम की ओर पहला कदम होता है. इसे प्रेम, दुआओं और उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिससे बच्चा अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने की प्रेरणा लेता है.