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Mental Health Problems: एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन युवाओं के लिए घातक साबित हो रहा है. इसकी वजह से युवाओं को मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याए…और पढ़ें

स्मार्टफोन के कारण युवाओं की मेंटल हेल्थ बिगड़ रही है.
हाइलाइट्स
- स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग युवाओं की मेंटल हेल्थ बिगाड़ रहा है.
- अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने से भी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं.
- देश में युवाओं का मेंटल हेल्थ कोसेंट 27.6 है, जो बुजुर्गों से भी कम है.
Young Adults in Severe Distress: आज के दौर में भारत के तमाम युवा गंभीर मेंटल प्रॉब्लम्स से जूझ रहे हैं. इसका खुलासा हाल ही में सामने आई “मेंटल स्टेट ऑफ द वर्ल्ड 2024” रिपोर्ट में हुआ है. इस रिपोर्ट में पता चला है कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड, एनवायरमेंट के टॉक्सिन्स और बढ़ता अकेलापन 18 से 24 साल के युवाओं को गंभीर मानसिक संकट की ओर धकेल रहा है. भारत में 75,000 से अधिक इंटरनेट यूजर्स पर किए गए सर्वे में ये बातें सामने आई हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो यंग एज के लोगों के लिए कुछ आदतें बेहद घातक साबित हो रही हैं.
इस रिपोर्ट में युवाओं की मानसिक परेशानियों के बढ़ने की वजह स्मार्टफोन को भी माना गया है. रिपोर्ट में 55 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों का एवरेज मेंटल हेल्थ कोसेंट (MHQ) 102.4 है, जो सामान्य मानसिक कार्यक्षमता को दर्शाता है. जबकि इसी पैमाने पर युवाओं का MHQ केवल 27.6 है, जो गंभीर संकट का संकेत देता है. भारत का औसत MHQ 57.8 है, जो वैश्विक औसत 63 से काफी कम है. 2008 में आए स्मार्टफोन युवा पीढ़ी में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की शुरुआत से जुड़े हैं. यह सिर्फ खुशियों की कमी नहीं, बल्कि भावनाओं को नियंत्रित करने, रिश्ते बनाए रखने और जीवन की चुनौतियों से निपटने की क्षमता में कमी का मामला है. यह समस्या वैश्विक स्तर पर इंटरनेट-सक्षम आबादी में ज्यादा देखी जा रही है.
इस रिपोर्ट में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन (UPF) और पर्यावरण के टॉक्सिक पदार्थों को भी मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालने वाला प्रमुख कारक बताया गया है. जो लोग नियमित रूप से अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, उनके मानसिक संकट का खतरा उन लोगों से 3 गुना अधिक है जो ये फूड कम खाते हैं. इसके अलावा कीटनाशक, हैवी मेटल्स और माइक्रोप्लास्टिक जैसे विषाक्त पदार्थ भोजन, पानी और अन्य खाने-पीने की चीजों में बढ़ रहे हैं. ये पदार्थ शरीर और ब्रेन में जमा होकर न्यूरोडेवलपमेंटल और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर रहे हैं. वैश्विक स्तर पर 35 साल से कम उम्र के युवाओं का औसत MHQ 38 है, जो 55+ उम्र के लोगों से 60 से काफी कम है. सिंगापुर और फिनलैंड जैसे देशों में बुजुर्गों का MHQ 100 से ऊपर है.
यह रिपोर्ट एक चेतावनी है कि अगर यह गिरावट जारी रही, तो समाज को चलाना मुश्किल हो सकता है. खासकर जब पुरानी पीढ़ी काम करना बंद कर देगी, तब यह समस्या बढ़ सकती है. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश बढ़ने के बावजूद हालात सुधर नहीं रहे, जिससे एक नए दृष्टिकोण की जरूरत है. जेन-जेड स्मार्टफोन के साथ बड़ी हुई पहली पीढ़ी है. इसमें यह देखा गया कि जितनी जल्दी वे स्मार्टफोन का इस्तेमाल शुरू करते हैं, उतनी ही अधिक मानसिक समस्याएं उन्हें वयस्क होने पर होती हैं. भारत जैसे देशों में युवाओं को उदासी, अकेलेपन और इमोशंस को कंट्रोल करने में कठिनाई जैसी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं. यह संकेत देता है कि तकनीक और आधुनिक जीवनशैली के प्रभावों को समझकर इनका समाधान ढूंढना जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ियों का मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रहे.
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