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Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि पर जानिए माता दुर्गा की सवारी सिंह है या शेर, कैसे कहलाई गईं शेरावाली


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Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि चल रहे हैं और हर दिन मां दुर्गा के अलग अलग स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. आपने मां दुर्गा की अलग अलग फोटो देखी होंगे, जिसमें कभी माता शेर पर तो कभी सिंह पर सवार दिखाई दे…और पढ़ें

नवरात्रि पर जानिए माता दुर्गा की सवारी सिंह है या शेर, कैसे कहलाई गईं शेरावाली

नवरात्रि पर जानिए माता दुर्गा की सवारी सिंह है या शेर

हाइलाइट्स

  • नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है.
  • मां दुर्गा को शेरावाली कहने की पौराणिक कथा है.
  • माता पार्वती की तपस्या से शेर उनका वाहन बना.

नवरात्रि के 9 दिन में मां दुर्गा के 9 अलग अलग स्वरूप का पूजन किया जाता है. मां दुर्गा के हर स्वरूप का अपना महत्व और अर्थ है और उनके कई नाम भी हैं. नवरात्रि के दिनों में व्रत रखकर विधि विधान के साथ माता की पूजा करने से सभी दुख व कष्ट दूर होते हैं और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है. नवरात्रि से जुड़ी कथा में आज हम आपको बताते हैं कि मां दुर्गा की सवारी के बारे में बताएंगे कि माता की सवारी सिंह है या शेर और माता दुर्गा किस तरह शेरांवाली कहलाईं. आइए इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं…

यह है पौराणिक कथा
नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग अलग स्वरूप की पूजा की जाती है और मां के हर स्वरूप में वह अलग अलग सवारी पर बैठती हैं. कभी माता आपको शेर पर दिखाई देंगी तो कभी सिंह पर. मां दुर्गा के अनेक नाम हैं, जिनमें से मां अंबे को शेरावाली भी कहा जाता है. लेकिन मां दुर्गा को शेरावाली क्यों कहा जाता है, इसके पीछे के पौराणिक कथा है. कथा के अनुसार, जब माता पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं. तब हजारों वर्षों की तपस्या के तेज से माता पार्वती का गोरा रंग सांवला पड़ गया था लेकिन तपस्या सफल हो गई थी.

माता पार्वती ने की तपस्या
कथा के अनुसार, एक दिन जब भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर हंसी मजाक कर रहे थे, तभी भगवान शिव ने मजाक में माता को काली कह दिया. भगवान शिव की यह बात माता को अच्छी नहीं लगी और तुरंत कैलाश पर्वत छोड़कर वन में गोरे रंग को पाने के लिए घोर तपस्या पर बैठ गईं. जब माता तपस्या कर रही थीं, तभी एक भूखा सिंह तपस्या कर रहीं माता को खाने के उद्देश्य से वहां पहुंचा लेकिन वह माता के पास आकर चुपचाप बैठ गया और देखता रहा.

इस तरह माता पार्वती कहलाई गईं महागौरी
माता की तपस्या में कई सालों बीत गए लेकिन सिंह अपनी जगह से नहीं उठा और भूखा प्यासा वहीं बैठा रहा. जब माता पार्वती की तपस्या खत्म हो गई, तभी वहां भगवान शिव पहुंच गए और उनको फिर से गौरवर्ण यानी गौरी होने का वरदान दिया. तब माता पार्वती गंगा स्नान के लिए चली गईं. स्नान के समय माता पार्वती के शरीर से काले रंग की देवी प्रकट हुईं और उस काली देवी के निकलते ही माता पार्वती फिर से गोरी हो गईं. काले रंग की देवी को नाम कौशिकी पड़ा और जब माता गौरवर्ण हो जाने के कारण देवी पार्वती महागौरी कहलाने लगीं.

इस तरह माता कहलाई गईं शेरावाली
जब माता स्नान करने के बाद वापस तपस्या के स्थल पर पहुंची तो शेर को वहीं बैठा पाया. दयालु देवी ने सिंह की इसे तपस्या मान लिया और अअपना वाहन बना लिया. यही कारण है कि मां दुर्गा को शेरावाली देवी देवताओं और भक्तों द्वारा शेरावाली कहलाई गईं.

माता की अन्य पौराणिक कथा
माता की दूसरी पौराणिक कथा स्कंद पुराण में मिलती है. इस कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने दो भाई सिंहमुखम और सुरापदमन नामक असुरों को पराजित कर दिया था. सिंहमुखम असुर कार्तिकेय से माफी मांगने लगा, जिससे प्रसन्न होकर कार्तिकेय ने सिंहमुखम को शेर बना दिया और मां दुर्गा का वाहन बनने का आशीर्वाद दे दिया.

9 देवियों के वाहन
देवी माता के कई स्वरूप हैं और उन स्वरूपों मे मां दुर्गा अलग अलग वाहन पर दिखती हैं. देवी माता के एक स्वरूप कात्यायनी देवी ने महिषासुर का वध किया था, माता कात्यायनी का वाहन सिंह है. माता कुष्मांडा और माता चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं. नवरात्रि की प्रतिपदा और अष्टमी तिथि शैलपुत्री और महागौरी वृषभ वाहन पर सवार हैं. वहीं माता कालरात्रि गधे की सवारी करती हैं तो माता सिद्धदात्रि कमल पर विराजमान होकर भक्तों को आशीष देती हैं.

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