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बीकानेर के तेलीवाड़ा चौक स्थित रघुनाथ मंदिर में करीब 112 साल से अधिक समय से भगवान श्री राम की जन्म कुंडली का वाचन हो रहा है. यहां हनुमान जी के सामने भगवान राम की जन्मकुंडली का वाचन होता है.
तेलीवाड़ा चौक स्थित रघुनाथ मंदिर में करीब 112 साल से अधिक समय से भगवान श्री राम
हाइलाइट्स
- बीकानेर में रामनवमी पर अनूठी परंपरा है.
- हनुमान जी के सामने राम की जन्मकुंडली का वाचन होता है.
- 112 साल से रघुनाथ मंदिर में कुंडली वाचन हो रहा है.
बीकानेर:- रामनवमी के दिन लोग भगवान श्रीराम के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करके दर्शन करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं. लेकिन बीकानेर में रामनवमी के अवसर पर एक अनूठी परंपरा है. इस परंपरा को एक परिवार कई वर्षों से निभाता आ रहा है. बीकानेर के तेलीवाड़ा चौक स्थित रघुनाथ मंदिर में करीब 112 साल से अधिक समय से भगवान श्री राम की जन्म कुंडली का वाचन हो रहा है. यहां हनुमान जी के सामने भगवान राम की जन्मकुंडली का वाचन होता है. इस साल भी ऐसा हुआ और बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस अनोखी परंपरा को देखने और सुनने के लिए मंदिर में जुटे.
34 साल से कर रहे जन्मकुंडली का वाचन
कुंडली वाचन परिवार से जुड़े पंडित लक्ष्मीनारायण रंगा ने Bharat.one को बताया कि मैं करीब 34 साल से जन्मकुंडली का वाचन कर रहा हूं. इससे पहले मेरे पिताजी 70 सालों तक वाचन करते थे. भगवान श्री राम की जन्मकुंडली का वाचन मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ति के आगे किया जाता है. रंगा ने बताया कि कुंडली में ग्रह और नक्षत्र के माध्यम से यह पता चलता है कि भगवान श्री राम का जन्म कब हुआ. वेद, समय और नक्षत्र आदि की जानकारी मिलती है.
दादा ने की थी परंपरा की शुरुआत
वे बताते हैं कि उनके दादा ज्योतिषाचार्य पंडित शिवरतन रंगा ने इस परम्परा की शुरूआत की. वे जब काशी से पढ़कर आए थे, तब इन्होंने भगवान श्रीराम की जन्मकुंडली अपने हाथ से बनाई थी. इस हस्तलिखित कुंडली का वाचन आज भी निरंतर जारी है. रंगा का दावा है कि पूरे भारत और विश्व में भगवान श्री राम की जन्मकुंडली का वाचन सिर्फ यहीं होता है.
रामनवमी के दिन मंदिर परिसर में होने वाले कुंडली वाचन को बड़ी संख्या में श्रद्धालु लोग आस्था और श्रद्धा भाव के साथ सुनते हैं. रामनवमी और कुंडली वाचन परम्परा की तैयारियां कई दिनों पूर्व शुरू हो जाती हैं. बच्चों से बुजुर्ग तक और महिलाएं रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम की जन्म कुंडली को सुनने के लिए मंदिर परिसर में विशेष रूप से उपस्थित रहे,







