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सोनभद्र के मां वैष्णो शक्तिपीठ धाम का इतिहास 2001 की चमत्कारिक घटना से जुड़ा है. मदनलाल गर्ग की दुर्घटना के बाद मंदिर की स्थापना हुई. यह मंदिर प्राकृतिक गुफा जैसा अद्भुत है.
ऐसा हुआ चमत्कार की बन गया आस्था का केंद्र
हाइलाइट्स
- मां वैष्णो शक्तिपीठ धाम का इतिहास 2001 की घटना से जुड़ा है.
- मंदिर का निर्माण जंगल में हुआ और प्राकृतिक गुफा जैसा है.
- हर रोज़ दूर-दराज़ से श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं.
सोनभद्र: उत्तर प्रदेश के अंतिम जिले सोनभद्र में स्थित प्रसिद्ध मां वैष्णो शक्तिपीठ धाम का इतिहास एक चमत्कारिक घटना से जुड़ा हुआ है. यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि इसकी स्थापना की कहानी भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देती है.
कहा जाता है कि साल 2001 में चोपन निवासी मदनलाल गर्ग अपनी कार से डाला के बारी क्षेत्र स्थित क्रशर प्लांट जा रहे थे. रास्ते में उनकी कार वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर सामने से आ रहे एक ट्रक से टकरा गई. टक्कर इतनी जोरदार थी कि देखने वालों को बड़ी दुर्घटना की आशंका हुई. घंटों बाद जब कार को निकाला गया तो सभी हैरान रह गए. मदनलाल पूरी तरह सुरक्षित थे. हादसे के बाद उन्होंने तुरंत मां वैष्णो देवी का नाम लिया और वहां मौजूद लोगों ने फैसला किया कि इस स्थान पर मां का मंदिर बनवाया जाएगा.
जंगल में बना भव्य मंदिर
जहां अब मंदिर है, वहां पहले घना जंगल था और जंगली जानवरों का आना-जाना आम बात थी. हादसे वाले स्थान के सामने ही जम्मू से लाई गई अखंड ज्योति के साथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, जिसमें करीब साढ़े तीन साल लगे. मां की कृपा से मंदिर निर्माण के लिए कभी पैसों की कमी नहीं हुई. जब अखंड ज्योति मंदिर में स्थापित की गई, उसी समय मौसम अचानक बदल गया — तेज हवा, गरजते बादल और घनघोर बारिश ने सबको एहसास दिलाया कि कोई दिव्य शक्ति मंदिर में आई है.
प्राकृतिक गुफा जैसा अद्भुत डिजाइन
मंदिर की गुफा का निर्माण इस तरह किया गया है कि वह पूरी तरह प्राकृतिक लगती है. जगह-जगह हाथी, बाघ, चीता, लंगूर, बंदर, भालू और सांप जैसे जंगली जीवों की आकृतियाँ बनाई गई हैं, जो दर्शन को और भी खास बनाती हैं. उड़ीसा के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट आरके परेरा द्वारा बनाए गए इस मंदिर में वास्तुकला का विशेष ध्यान रखा गया है. एक बीघा क्षेत्रफल में बने इस तीन मंज़िला मंदिर में गुफा 725 वर्ग मीटर तक फैली हुई है. मंदिर के बीचोंबीच मां वैष्णो देवी की प्रतिमा है. पहली मंजिल पर माता महालक्ष्मी. दूसरी मंजिल पर माता नवदुर्गा है. साथ ही भगवान शिव, हनुमान, भैरव बाबा, माता गायत्री और ब्रह्मा जी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं.
हर दिन उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब
आचार्य श्रीकांत दुबे के अनुसार, डाला-बारी स्थित इस मंदिर में हर रोज दूर-दराज़ से श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं. खास अवसरों पर तो लाखों की संख्या में भक्त यहां उमड़ते हैं. मां वैष्णो देवी के दरबार में भक्त नारियल बांधकर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करते हैं.
श्रद्धालुओं की सुविधा का रखा गया ध्यान
मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशाला, प्रेक्षागृह और शादी-ब्याह जैसे कार्यक्रमों के लिए अलग कमरे बनाए गए हैं. मंदिर परिसर के अंदर और बाहर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं ताकि सुरक्षा में कोई चूक न हो. अग्रवाल धर्मार्थ समिति द्वारा श्रद्धालुओं की सेवा और सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता है.







