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Are you not getting a job even after trying hard Premanand Maharaj told the solution । बहुत प्रयास करने पर भी नहीं मिल रही नौकरी? प्रेमानंद महाराज ने बताया समाधान


Premanand Ji Maharaj: संत प्रेमानंद महाराज जी के पास दूर-दूर से लोग मार्गदर्शन के लिए आते हैं. सोशल मीडिया पर उनके वीडियो वायरल होते रहते हैं. प्रेमानंद जी महाराज हर श्रद्धालु के सवालों को जवाब बेहद सरल भाषा में उदाहरण के साथ देते हैं. यही कारण है कि उनके श्रद्धालुओं की संख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है. प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन के लिए हाल ही में एक व्यक्ति वृंदावन पहुंचा वह अपने करियर को लेकर काफी परेशान दिख रहा है. ऐसे में भक्त ने प्रे‍मानंद जी महाराज से पूछा-“मैं कई सालों से मेहनत कर रहा हूं, फिर भी सफलता क्यों नहीं मिल रही, अब तो यह भी समझ नहीं आता कि आगे क्या करना है और क्या नहीं?”

महाराज जी ने इस सवाल का उत्तर बहुत गहराई से बताया. प्रेमानंद जी महाराज ने समझाया कि बाहरी सफलता हमारे पूर्व जन्मों के कर्म (प्रारब्ध) पर बहुत हद तक निर्भर करती है. उन्होंने विद्यारण्य जी की एक कथा सुनाई. विद्यारण्य जी का उदाहरण बताता है कि प्रारब्ध जब तक नष्ट नहीं होता, तब तक फल नहीं मिलता.

सुनाई ये कथा
विद्यारण्य नाम के एक विद्वान थे. उन्होंने बहुत सारे यज्ञ और पूजा किए ताकि उन्हें धन मिले और वो अपने माता-पिता की सेवा कर सकें. लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला. अंत में उन्होंने संन्यास ले लिया. तब मां गायत्री प्रकट हुईं और बोलीं, “अब तुम धन के योग्य हो.” लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कहा, “अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस भगवान का भजन करना है.”

मां ने बताया कि उनके पिछले जन्मों के 24 बड़े पापों की वजह से उन्हें धन नहीं मिला. 23 पाप यज्ञों से खत्म हुए और आखिरी संन्यास लेने से. इसका मतलब ये है कि जब तक कर्म खत्म नहीं होते, तब तक फल नहीं मिलता.

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सुदामा जी की कहानी
भगवान श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा जी बहुत गरीब थे. कई दिन तक अन्न भी नहीं मिलता था. उनकी पत्नी ने कहा कि हम तो भूखे रह लेंगे लेकिन हमारे बच्चे कैसे जिएंगे? सुदामा बोले, “मैं तो बस श्रीकृष्ण को जानता हूं, उनसे मांगूंगा नहीं.”

रुक्मिणी जी ने जब देखा कि भगवान उदास हैं, उन्होंने पूछा क्यों?. भगवान श्रीकृष्ण बोले, “मेरा मित्र सुदामा कई दिनों से भूखा है.” रुक्मिणी जी ने कहा, “आप तो भगवान हैं, मदद कर दीजिए.” भगवान बोले, “जब तक भक्त इच्छा नहीं करता, मैं कुछ नहीं कर सकता.”

फिर भगवान ने एक संत का रूप लेकर सुदामा की पत्नी के पास जाकर दान मांगा. पत्नी ने कहा, “मैं अशुद्ध हूं क्योंकि मैंने अभी बच्चे को जन्म दिया है, मैं कुछ नहीं दे सकती.” संत ने कहा, “जिसका मित्र श्रीकृष्ण हो, वो गरीब कैसे हो सकता है?”

सुदामा की पत्नी ने फिर सुदामा जी से कहा, “तुम श्रीकृष्ण से मिलने जाओ.” वो तो तैयार हो गए लेकिन बोले, “मांगूंगा कुछ नहीं, बस दर्शन कर लूंगा.”

घर में कुछ नहीं था, तो पत्नी ने पड़ोस से थोड़े से चावल मांगे- जो लोग आमतौर पर फेंक देते हैं. वही लेकर सुदामा भगवान के पास पहुंचे. द्वारपालों ने उनका अपमान किया लेकिन जैसे ही भगवान ने उनका नाम सुना, वो दौड़ पड़े.

भगवान ने खुद सुदामा के पैर धोए, उन्हें रुक्मिणी जी के पलंग पर बैठाया और पूछा, “कुछ लाए हो मेरे लिए?” सुदामा को शर्म आई लेकिन भगवान ने खुद चावल की पोटली छीनकर खा लिया और बोले, “आज तक इतना स्वादिष्ट कुछ नहीं खाया.”

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वापसी पर चमत्कार
सुदामा कुछ नहीं लेकर लौटे, लेकिन जब अपने घर पहुंचे तो देखा कि उनका घर महल बन चुका था. भगवान के एक सेवक ने बताया कि उनके भाग्य में केवल गरीबी लिखी थी, लेकिन भगवान ने उसे बदलकर कुबेर जितना धन दे दिया.

भगवान ने कहा, “जब मैंने वो चावल खाए, तब मेरे अंदर जो अनगिनत जीव हैं, वो सभी तृप्त हो गए. यही सुदामा जी का सबसे बड़ा पुण्य था.”

इससे हमें समझना चाहिए कि भगवान ही हमारे प्रारब्ध को बदल सकते हैं. हमें सिर्फ भगवान का नाम लेना है, प्रार्थना करनी है और भरोसा रखना है कि जो वो करेंगे, हमारे लिए सबसे अच्छा होगा.

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