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Ganesh Chaturthi: गणेश जी की पूजा में तुलसी की पत्तियों का उपयोग क्यों नहीं कर सकते, क्या है इसकी कहानी


गणेशजी की पूजा भारत में घर घर में होता है. इस समय तो देश में गणेश चतुर्थी मनाई जा रही है, जो 27 अगस्त से शुरू हुई और दस दिनों तक चलेगी. इसमें रोज सुबह शाम गणेशजी पूजा होगी, भोग भी चढ़ेगा. लेकिन इसमें तुलसी की पत्तियां बिल्कुल नहीं होंगी. गणेश के आसपास तुलसी को लाया ही नहीं जाता. दरअसल इसकी वजह दोनों की अनबन बताई जाती है. इसकी कहानी क्या है, ये जानते हैं.

आखिर वो कौन सा विवाद था कि गणेश और तुलसी कभी साथ नहीं होते. इस विवाद के बारे में एक पौराणिक कथा में बताया गया है. इसके अनुसार, एक बार भगवान गणेश गंगा नदी के तट पर तपस्या में बैठे हुए थे. आसपास क्या हो रहा है, उससे वो बिल्कुल अलग थे. उन्हें पता ही नहीं था वहां क्या चल रहा है. तपस्या करते हुए वो सिंहासन पर बैठे थे.

तुलसी ने गणेश से विवाह का प्रस्ताव रखा

उनके शरीर पर चंदन का लेप था. गले में फूलों की मालाएं थी. स्वरूप आकर्षक लग रहा था. तभी तुलसी वहां से गुजरीं. वह उस समय वहां से तीर्थयात्रा पर जा रही थीं. गणेश जी के दिव्य स्वरूप को देखकर वह मोहित हो गईं. उनके मन में गणेश जी से विवाह करने की इच्छा जागृत हुई.

तुलसीजी ने गणेश का ध्यान भंग किया. उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा. गणेश तप में लीन थे, उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. ये कहा कि वो ये विवाह नहीं करना चाहते.

तुलसी ने ध्यानमग्न गणेश के ध्यान को तोड़वाया और फिर उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसको गणेश जी स्पष्ट रूप से मना कर दिया (news18)

तब तुलसी ने गुस्से में ये शाप दे दिया

तुलसी को गणेश का ये जवाब अपमानजनक लगा. वह क्रोधित हो गईं. क्रोध में आकर उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया कि उनके दो बार विवाह होंगे. इस श्राप के चलते ही गणेश ने दो बार विवाह किया. पहली बार उन्होंने एकसाथ रिद्धि और सिद्धि से शादी रचाई, इसकी कहानी नीचे हैं. ये भी कहा जाता है कि उनका दूसरी बार विवाह बुद्धि से हुआ.

तब बदले में गणेश ने भी तुलसी को श्राप दिया

गणेशजी भी तुलसी के श्राप से नाराज हो गए. उन्होंने बदले में तुलसी को शाप दिया कि उनका विवाह एक राक्षस से होगा. इसके कारण तुलसी का विवाह शंखचूड़ नामक राक्षस से हुआ, जो दैत्यराज दंभ का बेटा था.

तब गणेश ने कहा – उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होगा

खैर इसके बाद दोनों को ही अपनी भूल का अहसास हुआ. तुलसी ने गणेश जी से क्षमा मांगी. गणेश जी ने क्षमा करते हुए कहा कि वह भविष्य में एक पवित्र पौधे के रूप में पूजनीय होंगी. भगवान विष्णु की प्रिय बनेंगी. साथ ही ये भी कहा कि जब उनकी पूजा होगी तब तुलसी का उपयोग वर्जित रहेगा. इसी वजह से गणेश जी की पूजा में तुलसी की पत्तियां नहीं चढ़ाई जातीं. वहीं भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी अनिवार्य मानी जाती हैं. गणेशजी की पूजा में दुर्बा घास का इस्तेमाल होता है, जो उन्हें प्रिय है.

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भगवान गणेश की पूजा में कभी तुलसी का इस्तेमाल नहीं होता और ना ही तुलसी को गणेशजी के पास रखना चाहिए. ( news18)

फिर कैसे हुई गणेश की शादी

तो अब आगे जानिए कि कैसे गणेशजी की शादी रिद्धि और सिद्धि से हुई. ‘रिद्धि’ का अर्थ है समृद्धि, सफलता और सम्पन्नता.’सिद्धि’ का मतलब है आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि और पूर्णता. सभी देवताओं ने गणेश जी से कहा कि अब उन्हें विवाह कर ही लेना चाहिए. गणेश जी ने एक तरीका निकाला. उन्होंने दो सुपारियां मंगवाईं. वही सुपारियां जिनका इस्तेमाल पूजा और पान में किया जाता है. उन्होंने दोनों सुपारियों को पानी से धोया. फिर उनकी पूजा शुरू की.

फिर उन्होंने उन सुपारियों को मंत्रों की शक्ति से सजीव कर दिया. ये दोनों सुन्दर कन्याएं बन गईं, जिनका नाम रिद्धि और सिद्धि रखा गया. गणेश जी ने उन दोनों से विवाह कर लिया. वैसे रिद्धि और सिद्धि को ब्रह्माजी की मानस पुत्रियां भी कहा जाता है.

रिद्धि और सिद्धि से गणेश जी के दो बेटे हुए. रिद्धि के पुत्र का नाम शुभ रखा गया तो सिद्धि के बेटे का नाम लाभ. इसीलिए भारत में किसी भी शुभ काम की शुरुआत में ‘शुभ-लाभ’ लिखा जाता है.

क्या गणेश की तीसरी पत्नी भी थीं

लेकिन कुछ क्षेत्रीय और लोक परंपराओं खासकर बंगाल की कहानियों में गणेश जी की एक तीसरी पत्नी का भी उल्लेख मिलता है, जिनका नाम बुद्धि है यानि बुद्धिमत्ता की देवी है. मान्यता है कि गणेश जी ने बुद्धि से भी विवाह किया था. गणेश जी की ये पत्नियां ये भी कहती हैं कि एक संतुलित जीवन के लिए बुद्धि, समृद्धि (रिद्धि) और आध्यात्मिक उन्नति (सिद्धि) तीनों का होना जरूरी है. हालांकि कुछ क्षेत्रों में गणेश जी को अविवाहित माना जाता है, खासकर दक्षिण भारत में, जहां वे बाल ब्रह्मचारी के रूप में पूजे जाते हैं.

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