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जायके में छिपा शाही स्वाद…अब भी ज़ुबान पर हैं निज़ाम के रसोईघर की अनसुनी कहानियां, जानें


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Hyderabad Food Special: निज़ाम का रसोईघर अपनी शाही विविधता, लज़ीज़ पकवानों और खास व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध था. वहां बनी बिरयानी, मटन डिशेज़ और पारंपरिक मिठाइयों का स्वाद आज भी हैदराबादियों के दिल और ज़ुबान पर राज करता है. ये रसोई सिर्फ खाना नहीं, एक सांस्कृतिक धरोहर थी.

हैदराबाद: निज़ाम की खान पान की विरासत भिन्न थी जिसमे फ़ारसी, तुर्की, और देशी दक्कन के स्वाद का मिश्रण हुआ करता था। निज़ाम के रसोई घर अलग अलग तरह के पकवान बना करते थे साथ उनके शाही रसोई में तरह तरह के पकवान विकसित भी किए जाते थे। निज़ाम के शाही रसोई से निकले कुछ व्यंजन आज भी हैदराबाद के साथ साथ पुरी दुनिया पसन्द किए जाते है

हैदराबाद: निज़ाम की खान पान की विरासत भिन्न थी. जिसमें फ़ारसी, तुर्की, और देशी दक्कन के स्वाद का मिश्रण हुआ करता था. निज़ाम के रसोई घर अलग अलग तरह के पकवान बना करते थे साथ उनके शाही रसोई में तरह तरह के पकवान विकसित भी किए जाते थे. निज़ाम के शाही रसोई से निकले कुछ व्यंजन आज भी हैदराबाद के साथ साथ पुरी दुनिया पसन्द किए जाते है.

कुलचा यह एक स्वादिष्ट रोटी है पहले निज़ाम मीर कमरुद्दीन हैदराबाद का शासक बनने की यात्रा शुरू करने से पहले सूफ़ी संत हजरत निजामुद्दीन सात कुलचे परोसे थे और भविष्यवाणी की थी कि तुम्हारे वंशज सात पीढ़ियों तक शासन करेंगे। भविष्यवाणी और रोटी के प्रेम में निज़ाम ने अपने झंडे पर कुलचा को एक प्रतीक के रूप में अपनाया।

कुलचा
यह एक स्वादिष्ट रोटी है पहले निज़ाम मीर कमरुद्दीन हैदराबाद का शासक बनने की यात्रा शुरू करने से पहले सूफ़ी संत हजरत निजामुद्दीन सात कुलचे परोसे थे और भविष्यवाणी की थी कि तुम्हारे वंशज सात पीढ़ियों तक शासन करेंगे. भविष्यवाणी और रोटी के प्रेम में निज़ाम ने अपने झंडे पर कुलचा को एक प्रतीक के रूप में अपनाया.

हलीम हलीम निज़ाम को बहुत पसन्द थी ये पकवान अरब के सुल्तान के द्धारा निज़ाम के रसोई में लाया गया था। हलीम मूल रूप से एक अरबी पकवान है जिसे निज़ाम महबूब अली खान के शासन के दौरान अरब प्रवासियों द्वारा पेश किया गया था उसके बाद इसे निज़ाम के रसोई में शामिल कर लिया गया और आज हैदराबाद शहर में हलीम की मांग सबसे ज़्यादा है।

हलीम
हलीम निज़ाम को बहुत पसन्द थी ये पकवान अरब के सुल्तान के द्धारा निज़ाम के रसोई में लाया गया था. हलीम मूल रूप से एक अरबी पकवान है जिसे निज़ाम महबूब अली खान के शासन के दौरान अरब प्रवासियों द्वारा पेश किया गया था उसके बाद इसे निज़ाम के रसोई में शामिल कर लिया गया और आज हैदराबाद शहर में हलीम की मांग सबसे ज़्यादा है.

पत्थर का गोश्त पत्थर का गोश्त 19वी सदी में मीर महबूब अली खान के शिकार अभियान के दौरान बनाया गया था। शिकार अभियान के दौरान उचित उपकरण नही थे गोश्त बनाने के लिए एक पत्थर के स्लैब के नीचे आग लगाई गई और जब को गर्म हो गया तो उसके ऊपर गोश्त पकाया गया। उस पर जो गोश्त बना वो निज़ाम को बहुत पसन्द आया और निज़ाम के रसोई में शामिल कर लिया गया और नाम दिया गया पत्थर का गोश्त। आज भी हैदराबाद चारमीनार तरह इसको खुब पसन्द किया जाता है।

पत्थर का गोश्त
पत्थर का गोश्त 19वी सदी में मीर महबूब अली खान के शिकार अभियान के दौरान बनाया गया था. शिकार अभियान के दौरान उचित उपकरण नही थे. गोश्त बनाने के लिए एक पत्थर के स्लैब के नीचे आग लगाई गई और जब वो गर्म हो गया तो उसके ऊपर गोश्त पकाया गया. उस पर जो गोश्त बना वो निज़ाम को बहुत पसन्द आया और निज़ाम के रसोई में शामिल कर लिया गया और नाम दिया गया पत्थर का गोश्त. आज भी हैदराबाद चारमीनार की तरह इसको खुब पसन्द किया जाता है.

उस्मानिया बिस्किट उस्मानिया बिस्किट और निज़ाम के शाही परिवार से इसका ख़ास संबंध हैं इसे उस्मानिया अस्पताल के शाही रसोई में मरीजों के आहार के रूप में तैयार किया गया था क्यूंकि ये खाने में बहुत ही हल्का होता है लेकीन उस्मानिया बिस्किट आज पूरे हैदराबाद बल्के पूरे देश में अपनी पहचान बनाए हुआ है चाय के साथ लोग खुब पसन्द से खाते हैं।

उस्मानिया बिस्किट
उस्मानिया बिस्किट और निज़ाम के शाही परिवार से इसका ख़ास संबंध हैं इसे उस्मानिया अस्पताल के शाही रसोई में मरीजों के आहार के रूप में तैयार किया गया था क्यूंकि ये खाने में बहुत ही हल्का होता है लेकीन उस्मानिया बिस्किट आज पूरे हैदराबाद बल्कि पूरे देश में अपनी पहचान बनाए हुआ है चाय के साथ लोग खुब पसन्द से खाते हैं.

जौजी का हलवा जौजी का हलवा हैदराबाद में 19वीं सदी की शुरुआत में मुहम्मद हुसैन द्वारा पेश किया गया, जो एक तुर्की आप्रवासी थे, जिन्होंने नामपल्ली में अपनी दुकान खोली थी. उनके बनाए हलवे ने मीर उस्मान अली खान का ध्यान आकर्षित किया, जिन्हें स्वादिष्ट मिठाइयों का शौक था. वे हलवे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हुसैन की दुकान का नाम तुर्की के राजा हमीद के नाम पर रख दिया।

जौजी का हलवा
जौजी का हलवा हैदराबाद में 19वीं सदी की शुरुआत में मुहम्मद हुसैन द्वारा पेश किया गया, जो एक तुर्की आप्रवासी थे, जिन्होंने नामपल्ली में अपनी दुकान खोली थी. उनके बनाए हलवे ने मीर उस्मान अली खान का ध्यान आकर्षित किया, जिन्हें स्वादिष्ट मिठाइयों का शौक था. वे हलवे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हुसैन की दुकान का नाम तुर्की के राजा हमीद के नाम पर रख दिया.

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जायके में छिपा शाही स्वाद…अब भी ज़ुबान पर हैं निज़ाम के रसोईघर की कहानियां


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