पंचमुखी गणेश जी का महत्व
पंचमुखी गणेश को अत्यंत दुर्लभ स्वरूप माना जाता है जहां एक मुख वाले गणेश जी घर में सुख-शांति और प्रसन्नता का प्रतीक हैं, वहीं पांच मुख वाले गणेश संकट निवारण और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक हैं.इस स्वरूप की पूजा से व्यक्ति के जीवन में आने वाली रुकावटें खत्म हो जाती हैं और उसे सही दिशा मिलती है.यही कारण है कि संत-महात्मा और साधक पंचमुखी गणपति की साधना को खास महत्व देते हैं.
दक्षिण दिशा की ओर मुख भगवान हेरंब गणपति का प्रतिनिधित्व करता है.यह स्वरूप धन, समृद्धि और सौभाग्य देने वाला है.इसे पूजने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और जीवन में उन्नति मिलती है.
3. पश्चिम मुख – विघ्नहर गणपति
पश्चिम दिशा का मुख विघ्नहर गणपति के रूप में जाना जाता है.यह स्वरूप जीवन से हर तरह की रुकावट और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है.भक्त मानते हैं कि इस मुख की पूजा से स्थिरता और सुरक्षा मिलती है.
उत्तर दिशा की ओर देखने वाला मुख गजानन गणपति का प्रतीक है.यह ज्ञान, बुद्धि और आध्यात्मिक जागरण से जुड़ा हुआ है.इस मुख की आराधना से इंसान को सही राह दिखती है और उसकी मानसिक शक्ति प्रबल होती है.
5. ऊपर मुख – लंबोदर गणपति
पांचवां और सबसे विशेष मुख ऊपर की ओर होता है, जिसे लंबोदर गणपति कहा जाता है.यह आनंद, मोक्ष और आत्मिक शांति का प्रतीक है.इस मुख की साधना से इंसान की इच्छाएं संतुलित होती हैं और जीवन में संतोष की प्राप्ति होती है.
घर में स्थापना के नियम
पंचमुखी गणेश जी की प्रतिमा को घर में विराजित करने के लिए खास नियम बताए गए हैं.इसे किसी भी साधारण जगह पर नहीं रखा जा सकता.शास्त्रों के अनुसार, इस प्रतिमा की स्थापना घर के पूजाघर में, साफ और शांत स्थान पर ही करनी चाहिए.पूजा के समय पूरे विधि-विधान और मंत्रों का उच्चारण जरूरी है. कहा जाता है कि यदि सही तरीके से पूजा न हो, तो इसका असर उल्टा भी हो सकता है. इसलिए पंडित या किसी जानकार की देखरेख में ही पंचमुखी गणेश की स्थापना करनी चाहिए.
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