
पंचांग के अनुसार, 8 सितंबर को कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि है, जो रात्रि 9 बजकर 11 मिनट तक प्रभावी रहेगी. इसके बाद द्वितीया तिथि आरंभ होती है. इस दिन पूर्व भाद्रपद नक्षत्र रात्रि 8 बजकर 2 मिनट तक और इसके बाद उत्तर भाद्रपद नक्षत्र प्रभावी रहता है. दिन में धृति योग, फिर शूल योग और अंततः गण्ड योग का क्रम बनता है. करणी दृष्टि से बालव, कौलव और तैतिल करणों का योग बनता है.
पितृपक्ष के पहले दिन पूरे दिन पंचक
पितृपक्ष के पहले दिन पंचक का प्रभाव पूरे दिन रहने वाला है, जिसके कारण शुभ कार्यों, खासकर गृह निर्माण, विवाह या यात्रा को टालना उचित माना जाता है. दिशाशूल पूर्व दिशा में होने के कारण उस दिशा की यात्रा से बचने की सलाह दी जाती है.
पितृपक्ष के पहले दिन श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान की शुरुआत की जाती है. परंपरा के अनुसार, सबसे पहले ऋषि, देवता और पितरों का स्मरण कर विधिवत पूजा की जाती है. पहले दिन सामान्यतः उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती या जिनका विधिवत श्राद्ध नहीं हो पाया हो.
पितृपक्ष के पहले दिन इन लोगों का होता है श्राद्ध
श्राद्ध से जुड़ी धार्मिक परंपराओं के अनुसार, प्रतिपदा तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु इसी तिथि को हुई हो या जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो. विशेष रूप से नाना-नानी या मातृ पक्ष के पितरों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है. चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि के दिन क्यों ना हुई हो.

पितृपक्ष पहले दिन ऐसे करें श्राद्ध
पितृपक्ष के पहले दिन श्राद्ध करते समय घर की शुद्धि और गंगाजल का छिड़काव करें, साथ ही शुद्ध वस्त्र धारण करें. इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके कुशा, जल, तिल, जौ और पितरों के नाम से तर्पण करें. साथ ही इस दिशा में पवित्र भावना से ब्राह्मण भोज एवं दान देना पुण्यकारी माना जाता है. दूध से बनी खीर, सफेद पुष्प, तिल, शहद, गंगाजल, और सफेद वस्त्र श्राद्ध में विशेष फलदायी माने जाते हैं. पंचबलि का अर्पण, गोदान, अन्न, और वस्त्र का दान पितरों को प्रसन्न करता है और परिवार में सुख-समृद्धि लाता है.