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देहरादून. उत्तराखंड देवताओं की भूमि कहा जाता है और यहां हिमालय पर्वत पर कई देशीमती प्राकृतिक उपहार मिलते हैं, जो औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ ही धार्मिक महत्व भी रखते हैं. ऐसा ही है उत्तराखंड का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल. इसका नाम सुनकर आप सोच रहे होंगे कि यह राज्य पुष्प क्यों चुना गया होगा? आइए जानते है इसके बारे में..

उत्तराखंड के राज्य पुष्प के रूप में प्रसिद्ध ब्रह्मकमल भगवान ब्रह्मा का आसन माना जाता है. पंचकेदारों में भी ब्रह्मकमल का उपयोग भगवान शिव के पूजन में होता है और यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है. इसलिए इसे देवपुष्प भी कहा जाता है.

ब्रह्मकमल इसलिए भी खास होते हैं क्योंकि यह पानी में नहीं बल्कि उच्च हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं.

ब्रह्मकमल भारत में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं. भारत के अलावा यह बर्मा और चीन के कुछ पर्वतीय इलाकों में भी ब्रह्मकमल पाया जाता है. सामान्यतः यह फूल बहुत दुर्गम स्थानों पर उगता है. यह कम से कम 4500 मीटर की ऊंचाई पर ही उगता है, हालांकि कभी-कभार यह 3000 मीटर की ऊंचाई पर भी खिल जाता है.

उत्तराखंड की बात करें तो ब्रह्मकमल बद्रीनाथ, केदारनाथ के साथ ही फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, रूप कुंड, तुंगनाथ जैसी हाई एल्टीट्यूड वाली जगहों पर देखा जाता है.

हाल ही में पिथौरागढ़ के ग्राम सभा जुम्मा के श्रद्धालुओं ने लगभग 35 से 40 किलोमीटर पदयात्रा करते हुए ब्रह्मकमल लेकर जुम्मा के नोला और राथी के हुस्कर केदार मंदिर में ब्रह्मकमलों को देवताओं को अर्पित किया. इसलिए ब्रह्मकमल भगवान भोलेनाथ को प्रिय माने जाते हैं.

ब्रह्मकमल का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है. यह फूल बुखार, खांसी-जुकाम, हड्डियों के दर्द, लकवा, लीवर की सूजन, घाव और आंतों से जुड़ी बीमारियों में उपयोगी माना जाता है. इतना ही नहीं, कैंसररोधी गुणों के कारण इससे कैंसर की दवाओं को बनाने के लिए भी इस पर रिसर्च की जा रही है.

ब्रह्मकमल का दोहन भी चिंता का विषय बनता जा रहा है क्योंकि यह एक दुर्लभ प्रजाति का पुष्प है, जिस पर जलवायु की मार और लोगों की छेड़छाड़ से इसे नुकसान झेलना पड़ रहा है. ब्रह्मकमल पर पीएचडी करने वाले देहरादून निवासी प्रभाकर सेमवाल ने बताया कि राज्य पुष्प ब्रह्मकमल को नुकसान पहुंचाने में कई कारक हैं, जिनमें ग्लोबल वॉर्मिंग, मंदिरों में चढ़ाए जाने के लिए फूलों का अत्यधिक दोहन और पहाड़ों में रहने वाली जनजातियों की ओर से संरक्षित फूल के प्रति लापरवाही बरतना शामिल है. इसलिए देवपुष्प के संरक्षण की जरूरत है.
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