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Faridabad News: सावन-भादो के बाद आने वाला पितृपक्ष पूर्वजों को स्मरण व तृप्त करने का समय है. महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य के अनुसार इन 16 दिनों में जलांजलि, अन्नदान, गौसेवा व गरीबों को भोजन कराना सबसे …और पढ़ें
आमतौर पर लोग गया जाकर पिंडदान और तर्पण करते हैं, लेकिन हर किसी के लिए वहां जाना संभव नहीं होता. ऐसे में घर पर रहते हुए भी अपने पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है और श्रद्धांजलि दी जा सकती है. यह समय ऐसा है जब घर-परिवार में पितरों को याद करके उन्हें जलांजलि दी जाए तो माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से संतानों का भाग्य चमक उठता है.
Local18 से बातचीत में महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य ने बताया कि भद्रे पूर्णिमा से लेकर अश्विन अमावस्या तक पूरे 16 दिन पितृपक्ष कहलाते हैं. मान्यता है कि इस अवधि में पितर आकाश मार्ग से आते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनकी संतान उन्हें याद करे. ऐसे दिनों में अनावश्यक खरीदारी से बचना चाहिए और पितरों की तिथि पर दाल-चावल, नमक जैसे सरल अन्न दान करना बड़ा पुण्यकारी माना जाता है. सबसे सरल और श्रेष्ठ उपाय है गौसेवा. जिस दिन पितरों की तिथि हो उस दिन गाय को गुड़ और हरा चारा खिलाने से सभी पितर तृप्त हो जाते हैं. गरुड़ पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है.
क्या है तर्पण विधि
श्रद्धा-भाव सबसे बड़ी पूंजी
कहते हैं…जैसा अन्न वैसा मन… इसलिए पितरों के निमित्त दिया गया हर कण हमारे लिए पुण्य का कारण बनता है. जो लोग सोचते हैं कि बिना गया गए श्राद्ध पूरा नहीं होता उनके लिए यह जानना जरूरी है कि श्रद्धा-भाव सबसे बड़ी पूंजी है. अपने घर पर ही पितरों का स्मरण कर जल और अन्न अर्पित कर गाय और गरीब को भोजन खिलाकर हम उनके आशीर्वाद के हकदार बन सकते हैं. यही सच्ची श्रद्धांजलि है जो हमारे जीवन की नैया पार लगाती है.