जितिया व्रत में तरोई के पत्तों की भूमिका
व्रत में जिन वस्तुओं का उपयोग होता है, उनमें तरोई के पत्तों को विशेष स्थान दिया गया है. यह पत्ते केवल एक पूजा सामग्री नहीं हैं, बल्कि इनका धार्मिक और सांस्कृतिक पक्ष बहुत गहरा है. जितिया व्रत में देवी-देवताओं को जो प्रसाद चढ़ाया जाता है, वह अधिकतर तरोई के पत्तों पर ही रखा जाता है. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी इसके पालन में कोई कमी नहीं आती.
लोककथाओं में उल्लेख मिलता है कि जब पहली बार यह व्रत किया गया था, तब व्रती महिलाओं ने पूजा में तरोई के पत्तों का ही उपयोग किया था. धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे समाज में फैल गई और अब इसे नियम की तरह निभाया जाता है. यह भी माना जाता है कि यह पत्ते सूर्यदेव और मातृशक्ति को प्रिय हैं, इसलिए इनका प्रयोग पूजा को अधिक फलदायक बनाता है.
कुछ मान्यताओं के अनुसार, तरोई के पत्तों में ऐसी विशेषता होती है जो पूजा की शुद्धता को बनाए रखती है. जब प्रसाद या अन्य सामग्री इन पत्तों पर रखी जाती है, तो उसमें किसी तरह की नकारात्मक ऊर्जा नहीं रह जाती, जिससे पूजा सफल मानी जाती है.
ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा आज भी जीवित है, जहां लोग पूजा की हर सामग्री को प्राकृतिक रूप से तैयार करते हैं. तरोई के पत्तों का प्रयोग न सिर्फ शुद्धता का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण की एक सुंदर मिसाल भी है. इसलिए जब भी जितिया व्रत की बात हो, तरोई के पत्तों की चर्चा जरूर होती है- क्योंकि ये पत्ते पूजा की शुद्धता, शक्ति और समर्पण का प्रतीक बन चुके हैं.
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https://hindi.news18.com/astro/astro-tips-jitiya-vrat-2025-what-is-the-use-of-gourd-leaves-special-in-jivitputrika-vrat-know-its-significance-ws-ekl-9618260.html