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grahan kaal ke dauran mandiron mein parda lagana chaiya ya nahi according to Premanand Ji Maharaj | ग्रहण काल में भगवान के मंदिर का पर्दा लगाना चाहिए या नहीं, जानें क्या कहते हैं प्रेमानंद महाराज


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21 सितंबर को सूर्य ग्रहण लगने वाला है हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखेगा नहीं इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा. जब जब ग्रहण पड़ता है तब मंदिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं और ग्रहण खत्म होने के बाद साफ सफाई और शुद्ध करने के बाद ही मंदिर के पट खुलते हैं लेकिन प्रेमानंद महाराज ने कहा है कि ऐसा करना गलत है.

ग्रहण काल में मंदिर का पर्दा लगाएं या नहीं, जानें क्या कहते हैं प्रेमानंद जी
आश्विन अमावस्या पर साल 2025 का अंतिम सूर्य ग्रहण लगने वाला है. हालांकि सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा. इससे पहले 7 सितंबर को चंद्र ग्रहण लगा था. आपने देखा होगा कि ग्रहण से पहले सूतक काल के समय घर के मंदिर या मंदिरों में पर्दा लगा दिया जाता है ताकि ग्रहण की नकारात्मक शक्तियां का मूर्तियों पर प्रभाव ना पड़े. लेकिन वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमनांद महाराज के ग्रहण काल में मंदिरों में पर्दा लगाने को लेकर अलग विचार हैं. महाराजजी कहते हैं कि ग्रहण काल में बिल्कुल भी भगवान का पर्दा नहीं लगाना चाहिए. ऐसी कोई सृष्टि में शक्ति नहीं बनी है, जो ईश्वर को नुकसान पहुंचा सके. आइए जानते हैं प्रेमानंद महाराज ने और क्या क्या कहा…

प्रेमानंद महाराज ने क्या कहा, जानें
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि बहुत से लोग कहते हैं कि आज ग्रहण है, मंदिर में पर्दा लगा दो. लेकिन क्यों लगा दो पर्दा… किसका ग्रहण और ऐसा कौन से ग्रहण का नक्षत्र है, वो सवा है, जो हमारी प्यारी जु, प्यारे जु तक पहुंच सके. प्यारी जु प्यारे जु की उपासना को रुकवा दे. नहीं नहीं… कोई भी ग्रह ऐसा नहीं है जो इतना बलवान हो कि हमारे श्याम सुंदर और लाडली जु के विलास में लग जाए. ऐसा है किसी के अरे ग्रहण से ईश्वर का कुछ नहीं होता है.

इसलिए मंदिरों में लगाया जाता है पर्दा
कई लोकल मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है. यह असर भगवान की मूर्तियों पर न पड़े, इसलिए मंदिरों के द्वार बंद कर मूर्तियों पर पर्दा डाल दिया जाता है. ग्रहण समाप्त होने तक न तो आरती होती है और न ही नियमित पूजा. ग्रहण खत्म होने पर सबसे पहले मंदिर में शुद्धिकरण किया जाता है. भगवान की मूर्तियों को गंगाजल या पवित्र जल से धोया जाता है. उसके बाद विशेष पूजा और आरती करके मंदिर के द्वार खोले जाते हैं.

शास्त्रों में क्या कहा गया है?
शास्त्रों में कहा गया है कि ग्रहण काल में मंत्र-जप, ध्यान और भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिए. पूजा-पाठ या आरती नहीं करनी चाहिए. ग्रहण काल (चंद्र या सूर्य ग्रहण) को अशुद्ध काल माना गया है. उस समय सूर्य या चंद्रमा पर राहु-केतु की छाया पड़ती है और देवताओं के प्रत्यक्ष दर्शन या पूजन को वर्जित बताया गया है. ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान कर भगवान की मूर्तियों को गंगाजल या पवित्र जल से धोकर शुद्धिकरण करना जरूरी माना गया है. लेकिन शास्त्रों में कभी भी ग्रहण काल में मंदिरों में पर्दा लगाने की बात नहीं कही गई है. ग्रहण काल में मानसिक पूजा के बारे में जरूर बताया गया है.

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Parag Sharma

मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें

मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें

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