Last Updated:
Deoghar Top 5 Durga Mandir: देवघर के जसीडीह, बैजनाथपुर, तेलझारी, कुकराहा और बाबा बैद्यनाथ मंदिर में शारदिय नवरात्रि पर सदियों पुरानी तांत्रिक विधि से मां दुर्गा की पूजा होती है. यहां शारदीय नवरात्रि पर धूमधाम से पूजा की जाती है.

सोमवार से शारदिय नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है. देशभर में शारदीय नवरात्र पुरे धूमधाम से मनाया जाता है. जगह-जगह पूजा पंडाल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और पूरे 9 दिनों तक विधि विधान के साथ पूजा आराधना किया जाता है. इससे मां दुर्गा बेहद प्रसन्न होती हैं.

इस साल 22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होने जा रहा है और 2 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन ही शारदीय नवरात्र का भी समापन होगा. शारदिय नवरात्रि कहीं वैष्णव विधि से तो कहीं तांत्रिक विधि से भी मनाया जाता है. भक्त इन दिनों में माता रानी की सच्ची उपासना करता है मां दुर्गा उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

वही आज हम आपको देवघर जिले के पांच ऐसे दुर्गा मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. जहाँ पर पूजा आराधना मुगल काल से ही चलती आ रही है. तांत्रिक विधि से पूजा आराधना की जाती है. जहां पर पूजा आज भी राजघराने के परिवार करते हैं.

जसीडीह के रोहिणी स्थित दुर्गा मंदिर में इस्टेट परिवार की ओर से करीब 200 सालों से माता की पूजा होती आ रही है. यह शहर की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा मानी जाती है. यहां मां की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है. कलश स्थापना के दिन से ही यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है. संजीव देव ने बताया कि दुर्गा मंदिर में करीब 200 साल से पूजा की जा रही है. यहां की पूजा रोहिणी इस्टेट के ठाकुर घराने के पूर्वजों द्वारा शुरु की गयी थी. इस मंदिर की सबसे खास परंपरा यह है कि नवरात्र के पहले दिन से ही यहां पर बलि की शुरुआत हो जाती है. दूर दराज से लोग यहां पर अपनी मुराद पूर्ण कराने के लिए पहुंचते हैं.

देवघर बाबा बैद्यनाथ मंदिर के पूरब द्वार मे स्थित माँ दुर्गा की प्रतिमा उठायी जाती है. यहां पर पूजा करने की परम्परा 1446 इसवी से ही चलती आ रही है. पूजा घड़ीदार समाज के द्वारा किया जाता है.यहां पर सबसे पहला पूजा पीताम्बर घड़ीदार ने किया था. आज उनकी 14 वी पीढ़ी पूजा कर रही है.

देवघर जिले के सारवा प्रखंड के बैजनाथपुर में स्थापित बिशनपुर दुर्गा मंदिर के नाम से प्रचलित है. राजा काल से ही बिशनपुर गढ़ घटवाल समाज के पूर्वज वीर मर्दन सिंह के द्वारा विशेष आराधना कर भीतर खंड मंदिर से लाकर यहां स्थापित किया गया है. तब से लेकर अब तक तांत्रिक विधि से पूजा पाठ की जाती रही है. बिशनपुर गढ़ के जमींदार मर्दन सिंह की सातवीं पीढ़ी के वंशज राजेश कुमार सिंह, खनेश कुमार सिंह व राजेंद्र सिंह बताते है कि1600 ई के आसपास दुर्गा पूजा शुरू हुई. यहां पर मांगी गयी हर मुराद जरूर पूर्ण होती है.

देवघर जिले के सारठ प्रखंड के तेलझारी गांव का दुर्गा मंदिर पुरे जिले मे प्रसिद्ध है. आज भी इस मंदिर मे राजपरिवार के लोग पूजा आराधना करते है.सबसे खास बात यह है की यहां पर 22 गांव के लोग पूजा आराधना करने के लिये लोग आते है. क्योंकि यह मंदिर 22 गांव का है. मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 1627 में महाराष्ट्र से तुलम सिंह आए और यहीं बस गए. उन्होंने मां दुर्गा की स्थापना की. कालांतर में मंदिर का निर्माण हुआ.दो वर्ष पूर्व दक्षिण भारतीय वास्तुकला पर आधारित इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. इस कार्य को तेलंग बंधुओं ने अंजाम देकर भव्य मंदिर का रूप दिया. ठाकुर घराने के संजीव शंकर सिंह व सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई और उनके पूर्वज 22 गांव में बस गए. तालझारी, सहरजोरी, अंबाकनाली, बंदरीसोल, सारवां प्रखंड के नकटी, मनीगढ़ी, ढांगा, नागरा समेत 22 गांव में बसे उनके पूर्वजों के वंशजों की कुलदेवी मां दुर्गा है.

देवघर जिले के साथ प्रखंड के कुकराहा दुर्गा मंदिर. इस मंदिर मे करीब 500 वर्षो से भी ज्यादा मां दुर्गा की पूजा चलती आ रही है. इस मंदिर माता दुर्गा की मूर्ति नही बनाई जाती है बल्कि माता विंध्याचल के स्वरुप को पूजा जाता है. क्योंकि माता विंध्याचल खुद यहां पर वास की है. कुकराहा इस्टेट के वंंशज बताते है कि मंदिर का निर्माण वंशराज सिंह ने 1865 में कराया था. इस मंदिर मे तांत्रिक विधि से पूजा आराधना की जाती है. पुजारी कहते हैं कि इस मंदिर मे सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा आराधना करने से बड़े से बड़े बीमारी ठीक हो जाती है. पुजारी जी यह भी कहते है कि यहां पर मुराद पूर्ण होने पर भैसों की बलि दी जाती है.