डॉ. पुनीत अग्रवाल बताते हैं कि शहरों में ध्वनि प्रदूषण हार्ट अटैक के रिस्क को बढ़ाता है. यह दिल के दौरे या बीमारी के बाद इलाज को भी प्रभावित कर सकता है. सबसे खास बात है कि हार्ट पर ध्वनि की तीव्रता से ज्यादा तेज ध्वनि में कितनी देर तक आप मौजूद हैं, यह ज्यादा असर डालता है. ध्वनि प्रदूषण और हार्ट डिजीज के कनेक्शन पर बहुत ज्यादा काम नहीं हुआ है लेकिन ये दो स्टडीज बहुत महत्वपूर्ण हैं.
जर्मन एक्सपर्ट के द्वारा की गई डेसिबल-एमआई स्टडी के अनुसार, 50 साल या उससे कम उम्र के युवा मरीज जिन्हें मायोकार्डियल इन्फ़ार्कशन (हार्ट अटैक) हुआ था, सामान्य लोगों की तुलना में हाई लेवल के शोर के संपर्क में थे. स्टडी बताती है कि शहरों में होने वाला शोर उन युवाओं में भी हार्ट अटैक का खतरा पैदा कर सकता है, जिनमें पारंपरिक रूप से ऐसा होने की संभावना कम होती है. ये बहुत महत्वपूर्ण बात है कि जो लोग स्मोकिंग नहीं करते या जिन्हें डायबिटीज भी नहीं है, उन्हें शोर की वजह से दिल का दौरा पड़ने की संभावना ज्यादा है. इस स्टडी में हार्ट अटैक से पीड़ित 50 या उससे कम उम्र के 430 मरीज शामिल किए गए थे,
लिहाजा ये आंकड़े बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण न केवल हार्ट की बीमारी होने पर इलाज को प्रभावित कर सकता है बल्कि हार्ट अटैक के लिए भी जिम्मदार है. बहुत ज्यादा शोर से हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ता है, जिसका असर हार्ट पर देखने को मिलता है.
डॉ. अश्विनी मेहता कहते हैं कि बहुत तेज साउंड हेल्थ को डिस्टर्ब करता है. तेज साउंड से देखा जाता है कि लोगों की नींद प्रभावित होती है, ब्लड प्रेशर बढ़ता है, एंग्जाइटी और स्ट्रेस का स्तर बढ़ जाता है और फिर ये सभी चीजें मिलकर हार्ट की सेहत पर असर डालने लगती हैं. तेज साउंड से सीधे हार्ट अटैक होता है, ऐसा कोई कनेक्शन अभी किसी स्टडी में नहीं दिखा है लेकिन हां दिल की बीमारी को बढ़ाने वाले फैक्टर्स इससे ट्रिगर होते हैं और हार्ट के पेशेंट की रिकवरी भी इससे प्रभावित होती है.
उन्होंने बताया कि सर गंगाराम अस्पताल में रामलीला की साउंड से तो नहीं लेकिन निजी फंक्शंस में बजने वाले हाई साउंड डीजे की वजह से हार्ट अटैक के कई मरीज अस्पताल में आए हैं. कुछ दिन पहले ही करीब 65 साल के एक सीनियर सिटिजन को पारिवारिक समारोह में बजने वाले डीजे की वजह से सीने में दर्द हुआ और हार्ट अटैक की शिकायत के बाद अस्पताल लाया गया था. इस तरह लाउड साउंड तो प्रभावित करता ही है.
बचाव के लिए क्या करें
डॉ. मेहता कहते हैं कि जो लोग बहुत सेंसिटिव हैं, या जो तेज साउंड बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, उन्हें ऐसी जगहों पर जाने से बचना चाहिए. इतना ही नहीं छोटे बच्चे, बुजुर्ग, प्रेग्नेंट महिलाएं और साउंड सेंसिटिव लोगों को बहुत ज्यादा शोर वाली जगहों से दूर रखें. अगर लगातार कई दिनों तक नींद डिस्टर्ब हो रही है तो इससे मानसिक तनाव के साथ अन्य हेल्थ इश्यूज बढ़ सकते हैं ऐसे में खुद का बचाव करें, पर्याप्त नींद लेने की कोशिश करें, अगर शोर से दूर कहीं रह सकते हैं तो इन दिनों उसका चुनाव करें.
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