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इस्लाम में शराब हराम… क्या अल्कोहल वाली दवा का इस्तेमाल होगा जायज! जानें क्या कहता है शरीयत?


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Sharia Rules On Alcohol : इस्लाम में शराब यानी अल्कोहल को हराम माना गया है. अब सवाल यह उठता है कि क्या दवाइयों में मौजूद अल्कोहल का इस्तेमाल भी गलत है? आइए जानते हैं कि इस विषय पर शरीयत क्या कहता है.

अलीगढ़ : इस्लाम में शराब (ख़मर) को हराम बताया गया है. इसका कारण यह है कि शराब इंसान की सोचने-समझने की क्षमता को खत्म कर देती है और उसे सही-गलत का फर्क नहीं करने देती. नशे की हालत में इंसान अक्सर झगड़े, गाली-गलौज, ज़ुल्म या अपराध में शामिल हो जाता है. यही नहीं, शराब शरीर के लिए भी हानिकारक है. आज की साइंस भी मानती है कि यह लिवर, दिमाग और पूरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है.

कुरआन शरीफ में शराब के बारे में कई बार ज़िक्र आता है. सबसे पहले सूरह अल-बक़राह (2:219) में कहा गया कि शराब और जुए में कुछ फायदा है, लेकिन नुकसान ज्यादा है. इसके बाद सूरह अन-निसा (4:43) में निर्देश दिया गया कि शराब पीकर नमाज़ के पास न जाओ, ताकि इंसान होश में रहकर इबादत कर सके. आखिरकार, सूरह अल-माइदा (5:90-91) में साफ हुक्म आया कि ‘ऐ ईमान वालों! शराब, जुआ, मूर्तिपूजा और किस्मत आज़माना ये सब शैतान के गंदे काम हैं, इनसे बचो ताकि कामयाब हो सको. अब सवाल यह उठता है कि अगर इस्लाम में शराब यानी अल्कोहल हराम है, तो क्या दवाइयों में मौजूद अल्कोहल का इस्तेमाल करना भी गलत माना जाएगा? यही जानने के लिए Bharat.one की टीम ने अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन से खास बातचीत की.

इंसान हो देता है अपना आपा
अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना इफराहीम हुसैन ने बताया कि इस्लाम में शराब यानी अल्कोहल को हराम करार दिया गया है. अल्लाह ने कुरान शरीफ में भी इसका हुक्म दिया है कि शराब न पिएं. शराब की मनाही इसलिए की गई है क्योंकि इसे पीने के बाद इंसान अपना आपा और सूझबूझ खो देता है. वह न तो सही फैसले ले पाता है और न ही अच्छे काम कर पाता है. उन्होंने आगे बताया कि शराब के सामाजिक, धार्मिक और शारीरिक सभी तरह के नुकसान हैं. नशे की हालत में इंसान न तो जिम्मेदारी से फैसले ले सकता है और न ही अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकता है. इन्हीं तमाम बुराइयों और नुकसानों से बचाने के लिए इस्लाम में शराब यानी अल्कोहल को हराम करार दिया गया है.

दवा से नहीं खत्म होती सूझबूझ
मौलाना इफराहीम हुसैन का कहना है कि दवाइयों में अल्कोहल का इस्तेमाल अलग मामला है. उन्होंने बताया कि दवाइयों में अल्कोहल की जो थोड़ी-बहुत मात्रा मिलाई जाती है, उससे न तो नशा होता है और न ही इंसान की सूझबूझ खत्म होती है. यह महज़ इलाज का हिस्सा है, जिसे मजबूरी और सेहत की ज़रूरत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

इस हालात में कर सकते हैं इस्तेमाल?
इस्लाम में हराम चीज़ का उपयोग सिर्फ मनोरंजन या नशे के लिए करना मना है. लेकिन अगर वही चीज़ इलाज या जिंदगी बचाने के लिए जरूरी हो और उसका कोई विकल्प न हो, तो शरई तौर पर दवाई के रूप में उसका इस्तेमाल किया जा सकता है. बीमारी की हालत में इंसान की जान बचाना सबसे अहम है. इसलिए अगर किसी दवा में अल्कोहल की थोड़ी मात्रा मौजूद हो और उसका विकल्प न मिले, तो उसे लेना जायज़ है. लेकिन जहां तक संभव हो, कोशिश करनी चाहिए कि बिना अल्कोहल वाली दवाइयों का इस्तेमाल किया जाए.

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मृत्‍युंजय बघेल

मीडिया फील्ड में 5 साल से अधिक समय से सक्रिय. वर्तमान में News-18 हिंदी में कार्यरत. 2020 के बिहार चुनाव से पत्रकारिता की शुरुआत की. फिर यूपी, उत्तराखंड, बिहार में रिपोर्टिंग के बाद अब डेस्क में काम करने का अनु…और पढ़ें

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