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Amygdala Damage and Loss of Fear: कुछ रेयर डिजीज की वजह से इंसानों में डर की भावना पूरी तरह खत्म हो जाती है. यह बदलाव दिमाग के एक हिस्से ऐमिग्डाला के खराब हो जाने से होता है. इस कंडीशन में व्यक्ति खतरे महसूस नहीं कर पाता है, जो कई बार जोखिम भरा हो सकता है. डर की भावना हमारे जीवित रहने के लिए बेहद जरूरी है.
When Human Brain Stops Feeling Fear: डर सभी को लगता है और यह हमारी जिंदगी के लिए जरूरी भी है. साहसी व्यक्ति भी जब खतरे में फंस जाते हैं, तो उन्हें डर लगने लगता है. यह हमारे शरीर की एक नेचुरल प्रोसेस है और यह हमें खतरों से अलर्ट करती है और जिंदगी बचाने में मदद करती है. क्या आपने कभी सोचा है कि अगर किसी इंसान को डर लगना ही बंद हो जाए, तो क्या होगा? आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कैसे संभव है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ रेयर डिजीज में ऐसा भी हो जाता है. इन परेशानियों का शिकार होने पर इंसान के अंदर से डर की भावना पूरी तरह खत्म हो जाती है. इससे न केवल उनकी भावनात्मक स्थिति बदल जाती है, बल्कि उनका व्यवहार भी पूरी तरह से बदल जाता है.
कुछ रेयर मेडिकल कंडीशंस जैसे उर्बाख–वीथे डिजीज (Urbach–Wiethe Disease) में हमारे ब्रेन का ऐमिग्डाला डैमेज हो जाता है या काम करना बंद कर देता है. इस बीमारी को लिपॉइड प्रोटीनोसिस भी कहा जाता है. रिसर्च बताती हैं कि यह एक जेनेटिक रेयर डिजीज है. अब तक इसके विश्व में केवल 400 मामले ही सामने आए हैं. इस बीमारी के कारण व्यक्ति को डर महसूस ही नहीं होता है. ऐसे व्यक्ति खतरनाक परिस्थितियों में भी शांत रहते हैं, चाहे वह ऊंचाई हो, गहरी जगह हो या कोई जानवर सामने हो. यह स्थिति उन्हें भावनात्मक रूप से अलग बना देती है. हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे लोग खुशी, गुस्सा, उदासी, हैरानी जैसी भावनाएं पूरी तरह महसूस करते हैं, लेकिन सिर्फ डर की भावना पूरी तरह से खत्म हो जाती है.
वैज्ञानिक रिसर्च में भी सामने आया है कि डर दो तरह के होते हैं. एक बाहरी खतरे जैसे किसी से हमला होना, सांप या ऊंचाई से डर. दूसरा आंतरिक खतरे जैसे घुटन, सांस न आना या दिल की तेज धड़कन. बाहरी खतरों पर ऐमिग्डाला प्रतिक्रिया देता है, जबकि आंतरिक खतरों पर दिमाग का एक अलग हिस्सा ब्रेनस्टेम (Brainstem) एक्टिव होता है. जिन लोगों का ऐमिग्डाला क्षतिग्रस्त होता है, वे सामाजिक तौर पर भी अलग तरीके से व्यवहार करते हैं. वे लोगों से बेहद नजदीक आ जाते हैं, पर्सनल स्पेस का ख्याल नहीं रखते और कई बार खतरनाक परिस्थितियों में भी खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं. यह व्यवहार सामाजिक चेतना के लिए खतरनाक हो सकता है, क्योंकि ये लोग खतरे को पहचान नहीं पाते हैं.
हेल्थ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि डर हमेशा नुकसानदायक नहीं होता है. यह हमें जिंदा रहने और सतर्क रहने में मदद करता है. डर न हो, तो जीवन खतरनाक बन सकता है. अगर डर ज्यादा हो तो जीवन तनावपूर्ण बन जाता है. इसलिए जरूरी है कि हमारे दिमाग का यह सिस्टम संतुलन में रहे. वैज्ञानिक अब इस दिशा में रिसर्च कर रहे हैं कि कैसे मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से डर की प्रतिक्रिया को संभालते हैं और कैसे जरूरत से ज्यादा या बहुत कम डर होने की स्थितियों का इलाज किया जा सकता है.

अमित उपाध्याय वर्तमान में Bharat.one Hindi की लाइफस्टाइल टीम में काम कर रहे हैं। उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 9 वर्षों का अनुभव है. वे खासतौर पर हेल्थ, वेलनेस और लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों को गहराई से स…और पढ़ें
अमित उपाध्याय वर्तमान में Bharat.one Hindi की लाइफस्टाइल टीम में काम कर रहे हैं। उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 9 वर्षों का अनुभव है. वे खासतौर पर हेल्थ, वेलनेस और लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों को गहराई से स… और पढ़ें
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-the-rare-disease-removes-fear-from-the-human-brain-science-behind-living-without-fear-know-details-9675768.html