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सुल्तानपुर शहर के साथ-साथ आसपास गांव में लगभग 1400 से अधिक पूजा पंडाल सजाए जा रहे हैं. अगर शहर की बात करें तो शहर में ही 144 दुर्गा पूजा के पंडाल सजाए जा रहे हैं. जिसको लेकर प्रशासन भी अलर्ट मोड पर है और शहर के भीतर भारी वाहनों पर प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया है.
नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है. ऐसे में देश के कोने कोने में दुर्गा पंडाल सजाए गए.यह पंडाल नवरात्रि की प्रथम तिथि को ही सजा दिए गए. वहां मूर्तियां स्थापित कर दी गई लेकिन भारत में एक ऐसी जगह है सुल्तानपुर जहां दुर्गा पूजा के पंडाल में देवी की प्रतिमाएं स्थापना के दिन नहीं बल्कि दशहरा के एक या दो दिन पहले स्थापित की जाती है ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा के बाद सुल्तानपुर के दुर्गा पूजा देश में दूसरे स्थान पर आयोजित की जाती तो आईए जानते हैं. सुल्तानपुर की इस ऐतिहासिक दुर्गा पूजा की खासियत.
केंद्रीय पूजा समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश पांडे ने Bharat.one से कहा कि सुल्तानपुर जिले का दुर्गापूजा महोत्सव विजयादशमी से शुरू हो जाता है. जो इस बार 2 अक्तूबर को विजयदशमी का पर्व पड़ रहा है. इसी दिन से ही पूजा महोत्सव चरम पर हो जाती है. दुर्गा पूजा के लिए पूजा समितियों की ओर से बनवाए जा रहे. पंडालों के निर्माण में तेजी आ गई है. जो युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं. कारीगरों द्वारा पंडालों के निर्माण में तेजी ला दी गई है और मूर्तिकार भी प्रतिमाओं के रंग-रोगन को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं.
इतना पुराना है यहां की दुर्गा पूजा का इतिहास
सुल्तानपुर की दुर्गा पूजा का इतिहास का पुराना रहा है.जिले में दुर्गापूजा का शुभारंभ ठठेरी बाजार में भिखारीलाल सोनी और उनके सहयोगियों ने साल 1959 में कराया था.जिसका सिलसिला समय के साथ मुसल्सल बढ़ता ही गया. और दूसरी मूर्ति की स्थापना 1961 में रुहट्ठा गली में बंगाली प्रसाद सोनी ने कराई थी और वर्ष 1970 में दो प्रतिमाएं और जुड़ीं.
कई प्रदेश से आते हैं श्रद्धालु
इस दुर्गा पूजा महोत्सव में सुल्तानपुर जिले के ही नहीं बल्कि कई राज्यों लोग दुर्गा पूजा महोत्सव देखने आते हैं. इस दुर्गा पूजा महोत्सव में कई तरह के कार्यक्रम भी कराए जाते हैं.