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न मूर्ति, न पिंडी…झारखंड का 300 साल पुराना अनोखा मंदिर, यहां मां के निराकार रूप की भक्त करते हैं पूजा


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Hazaribagh Budhiya Mata Mandir: हजारीबाग के इचाक स्थित बुढ़िया माता मंदिर में 300 वर्षों से निराकार रूप में दीवार की पूजा होती है. नवरात्र में इस मंदिर में सिंदूर चढ़ाने की अनोखी परंपरा है. यहां दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.

हजारीबाग: वैसे तो मां दुर्गा के अनेक रूप हैं. कहीं चरण तो कहीं नयन, कहीं ज्वाला के रूप में मां दुर्गा की पूजा होती है. हजारीबाग के इचाक प्रखंड में एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर में मां के निराकार रूप की आराधना की जाती है. यहां न तो प्रतिमा है और न ही पिंडी. इसके बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था ऐसी है कि दूर-दराज से लोग यहां पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं.

300 सालों से की जा रही है पूजा

हजारीबाग के इचाक में माता के निराकार स्वरूप की पूजा पिछले 300 वर्षों से हो रही है. बुढ़िया माता के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में लोग केवल दीवार की पूजा करते हैं. नवरात्र की सप्तमी तिथि को यहां माता को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है. मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से झोली फैलाता है, माता उसकी मनोकामना पूर्ण कर उसकी झोली भर देती हैं.

यहां आए भक्तों का कहना है कि मां ने सदैव आशीर्वाद देकर उन्हें संबल दिया है. यही कारण है कि यहां की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. महिला भक्त गायत्री देवी बताती हैं कि इस मंदिर की महिमा का वर्णन करना उगते सूरज को दीप दिखाने के समान है. साल भर श्रद्धालु यहां आते रहते हैं, लेकिन नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना के दौरान भक्तों की भीड़ और बढ़ जाती है.

दीवार की आकृति पर सिंदूर चढ़ाते हैं श्रद्धालु

इचाक प्रखंड के बनस टांड़ स्थित बुढ़िया माता मंदिर में नवरात्र के समय विशेष परंपरा निभाई जाती है. पूरे नवरात्र दिन-रात पूजा होती है. जबकि सप्तमी पर सिंदूर चढ़ाने की रस्म पूरी की जाती है. यहां दीवार पर बनी आकृति पर ही सिंदूर चढ़ाया जाता है. श्रद्धालु विशाल बताते हैं कि कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पूर्व लोग मां का आशीर्वाद लेने यहां अवश्य आते हैं और विश्वास रखते हैं कि माता हमेशा अपने भक्तों को सुखी रखेंगी.

जानें मंदिर की मान्यता

स्थानीय लोग बताते है कि इस मंदिर की एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि 1668 में इचाक क्षेत्र में हैजा महामारी फैली थी. तभी एक वृद्धा बाजार में प्रकट हुईं. उन्होंने ग्रामीणों को मिट्टी दी और उसे गांव से दूर रखने का निर्देश दिया. कुछ देर बाद वह वृद्धा गायब हो गईं और धीरे-धीरे महामारी भी समाप्त हो गई. वही मिट्टी बाद में दिव्य रूप में पूजित होने लगी और आज तक उसकी पूजा की जाती है.

भक्तों का मानना है कि बुढ़िया माता मंदिर की महिमा अनुपम है. जिसने भी यहां सच्चे मन से झोली फैलाई, उसके जीवन में सुख-समृद्धि आ गई. इसी आस्था और श्रद्धा के कारण दूर-दूर से लोग माता का आशीर्वाद लेने यहां आते हैं और अपनी हाजिरी लगाते हैं.

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