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शनिवार के दिन द्वादशी तिथि और त्रयोदशी तिथि का संयोग बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. द्वादशी और त्रयोदशी तिथि होने की वजह से इस दिन पद्मनाभ द्वादशी और शनि प्रदोष तिथि का व्रत किया जाएगा, जिससे इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का मौका मिलेगा….
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को शनिवार का दिन है. साथ ही इस दिन त्रयोदशी तिथि का संयोग बन रहा है, जिससे इस दिन पद्मनाभ द्वादशी और शनि प्रदोष तिथि व्रत किया जाएगा. पद्मनाभ द्वादशी और प्रदोष व्रत शनिवार के दिन होने की वजह से इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है. दरअसल इस दिन द्वादशी तिथि का समय 3 अक्टूबर को शाम के 6 बजकर 32 मिनट से शुरू होकर 4 अक्टूबर को शाम के 5 बजकर 9 मिनट तक रहेगा. इसके बाद त्रयोदशी शुरू हो जाएगी, जिस वजह से इस दिन शनि प्रदोष व्रत भी है. आइए जानते हैं पद्मनाभ द्वादशी और शनि प्रदोष व्रत का महत्व…
द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह के 11 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह के 9 बजकर 13 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा. इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा कुंभ राशि में रहेंगे. साथ ही पद्मनाभ द्वादशी के दिन द्विपुष्कर योग बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है.

पद्मनाभ द्वादशी का महत्व
इसी के साथ ही इस दिन पद्मनाभ द्वादशी भी है. पुराणों के अनुसार, पद्मनाभ द्वादशी पापांकुशा एकादशी के अगले दिन, यानी द्वादशी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है. मान्यता है कि भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्माजी का जन्म हुआ था. इस व्रत को करने से धन-संपदा, सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह दिन नया व्यवसाय शुरू करने, निवेश करने या कोई महत्वपूर्ण कार्य आरंभ करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. साधक इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करते हैं, जिसमें तुलसी पत्र, कमल पुष्प और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं. माना जाता है कि यह व्रत जीवन की बाधाओं को दूर कर समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है.

शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शनि प्रदोष व्रत को दक्षिण भारत में प्रदोषम कहते हैं. यह व्रत चंद्र मास की दोनों त्रयोदशी को किया जाता है. प्रदोष व्रत के दिन के अनुसार, इसे सोम प्रदोष, भौम प्रदोष और शनि प्रदोष कहा जाता है, जब यह क्रमशः सोमवार, मंगलवार और शनिवार को पड़ता है. यह व्रत नाना प्रकार के संकट और बाधाओं से मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है. भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं, इसलिए यह व्रत शनि ग्रह से संबंधित दोषों, कालसर्प दोष और पितृ दोष के निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है. इस व्रत के पालन से भगवान शिव की कृपा से सभी ग्रह दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है और शनि देव की कृपा से कर्मबन्धन काटने में मदद मिलती है. इस दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में शिवलिंग की पूजा की जाती है और शनि मंत्रों के जाप और तिल, तेल व दान-पुण्य करने का प्रावधान है. यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो शनि की दशा से पीड़ित हैं.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें
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https://hindi.news18.com/news/dharm/padmanabha-dwadashi-2025-and-shani-pradosh-vrat-2025-know-puja-vidhi-shubh-yog-astro-remedies-and-importance-ws-kl-9693814.html