Diwali Firecrackers Ban: दीवाली का नाम आते ही आंखों के सामने रोशनी, दीपों की जगमगाहट और रंग-बिरंगी आतिशबाजी का नजारा घूम जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक दौर ऐसा भी था जब दीवाली पर पटाखे जलाना मना था? इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1667 में पूरे साम्राज्य में आतिशबाजी पर बैन लगा दिया था. उस समय ये आदेश भले ही किसी खास त्योहार का नाम लिए बिना जारी किया गया था, लेकिन लोगों ने इसे सीधा हिंदुओं के त्योहार दीवाली से जोड़कर देखा. यह फैसला सिर्फ एक प्रतिबंध नहीं था, बल्कि उस दौर की धार्मिक और राजनीतिक सोच को भी दर्शाता था. आइए जानते हैं कि आखिर औरंगजेब ने यह बैन क्यों लगाया, उसका असर क्या हुआ और लोगों ने इस आदेश के बावजूद दीवाली कैसे मनाई.
1667 में औरंगजेब ने अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक समारोह में आतिशबाजी या बारूद का प्रयोग नहीं किया जाएगा. यह आदेश पूरे मुगल साम्राज्य में लागू हुआ. हालांकि, इसमें किसी त्योहार का नाम नहीं लिखा गया था, लेकिन समय देखकर यह समझा गया कि यह दीवाली के आसपास जारी हुआ था. इसलिए लोगों ने इसे हिंदू त्योहारों, खासकर दीवाली पर रोक के रूप में देखा.
दीवाली, जो हमेशा रोशनी और खुशी का प्रतीक रही है, उस साल कुछ फीकी पड़ गई. क्योंकि उस दौर में भी दीपों और रोशनी के साथ थोड़ी-बहुत आतिशबाजी दीवाली की रौनक बढ़ाती थी. औरंगजेब का यह आदेश बिना समय सीमा के था, यानी यह नहीं बताया गया कि यह बैन कितने दिनों के लिए है.

क्यों लगाया गया बैन
इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब इस्लामी सिद्धांतों को सख्ती से लागू करने वाला शासक था. उसने अपने शासनकाल में कई ऐसी परंपराओं को रोका जिन्हें वह “गैर-इस्लामी” मानता था. इसलिए त्योहारों पर आतिशबाजी या बड़े जश्न को उसने शाही अनुशासन के खिलाफ बताया.
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब ने आतिशबाजी पर रोक सुरक्षा और शांति व्यवस्था के लिए लगाई थी, क्योंकि उस समय बारूद और विस्फोटक चीजों का इस्तेमाल बिना नियंत्रण के हो रहा था. हालांकि, ज्यादातर लोगों ने इसे धार्मिक असहिष्णुता का उदाहरण माना.

हिंदुओं ने कैसे मनाई थी बिना पटाखों की दीवाली
- औरंगजेब के इस आदेश के बावजूद लोगों ने दीवाली मनाना बंद नहीं किया. बल्कि उन्होंने इसे और भी पारंपरिक और शांत तरीके से मनाया.
- लोगों ने घरों के बाहर ज्यादा दीये जलाए, ताकि अंधेरा बिल्कुल न रहे.
- रंगीन मिट्टी के दीयों और लैंपों से घरों को सजाया.
- प्रार्थना और भक्ति पर जोर दिया- मंदिरों में भजन, कीर्तन और सामूहिक आरती की परंपरा बढ़ी.
- कुछ लोगों ने गुप्त रूप से पटाखे भी जलाए, लेकिन खुलेआम ऐसा करना प्रतिबंधित था.
- इस तरह लोगों ने औरंगजेब के आदेश का सीधा विरोध किए बिना भी अपने त्योहार को पूरी श्रद्धा और खुशी के साथ मनाया.

मुगल काल में आतिशबाजी का इतिहास
यह बात दिलचस्प है कि आतिशबाजी की परंपरा मुगल काल में ही सबसे ज्यादा बढ़ी. अकबर के समय में इसे शाही उत्सवों का हिस्सा बनाया गया. शाहजहां के दौर में दिल्ली और आगरा में दीवाली और होली पर बड़े स्तर पर आतिशबाजी होती थी. लेकिन औरंगजेब के शासन में धार्मिक सख्ती बढ़ी, और उसने इन जश्नों को सीमित करने की कोशिश की.
इतिहासकारों के मत
कई आधुनिक इतिहासकार यह मानते हैं कि औरंगजेब के आदेश को केवल धार्मिक दृष्टि से देखना पूरी सच्चाई नहीं है. किंग्स कॉलेज लंदन की प्रोफेसर कैथरीन बटलर शॉफील्ड का कहना है कि औरंगजेब ने आतिशबाजी पर सुरक्षा कारणों से प्रतिबंध लगाया था, क्योंकि उसके दौर में बारूद और विस्फोटक सामग्री पर नियंत्रण मुश्किल था. वहीं, कुछ भारतीय इतिहासकारों का मानना है कि यह बैन धार्मिक भावना से प्रेरित था, क्योंकि औरंगजेब ने अपने शासनकाल में हिंदू मंदिरों और त्योहारों पर भी कई पाबंदियां लगाई थीं.

प्रतिबंध का अंत और पटाखों की वापसी
औरंगजेब की मृत्यु 1707 में हुई, और उसके बाद उसके उत्तराधिकारी इतने सख्त नहीं रहे. धीरे-धीरे यह बैन खत्म हो गया. 18वीं शताब्दी में फिर से दीवाली पर आतिशबाजी का चलन लौटा. खासकर मराठा और राजपूत रियासतों में इसे बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा. ब्रिटिश शासन आने के बाद तो आतिशबाजी का इस्तेमाल और भी ज्यादा बढ़ गया, क्योंकि अंग्रेजों ने सार्वजनिक समारोहों और आयोजनों में फायरवर्क को शो ऑफ ग्रैंड सेलिब्रेशन का प्रतीक बना दिया.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/why-did-aurangzeb-ban-firecrackers-on-diwali-and-how-hindus-celebrated-without-crackers-ws-kl-9751862.html