Dev Deepawali Kab Hai 2025 Date: देव दीपावली हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. देव दीपावली के नाम से ही स्पष्ट है, देवताओं की दीपावली. पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा को सभी देवी और देवता शिव की नगरी काशी में गंगा के तट पर आते हैं. वे गंगा में स्नान के बाद शिव पूजा करते हैं और दीप जलाते हैं. इस वजह से हर साल कार्तिक पूर्णिमा को प्रदोष काल में काशी में गंगा के घाटों पर दीप जलाए जाते हैं और देव दीपावली मनाई जाती है. जो इस दिन गंगा स्नान करके शिव पूजा करता है और दीप जलाता है. उसके सभी प्रकार के कष्ट, रोग, दुख आदि मिटते हैं. शिव कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस बार देव दीपावली पर 2:35 घंटे का मुहूर्त ही है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं कि देव दीपावली कब है? देव दीपावली का मुहूर्त, दीप जलाने का शुभ समय और महत्व क्या है?
देव दीपावली की तारीख
देव दीपावली मुहूर्त
देव दीपावली के दिन 5 नवंबर का ब्रह्म मुहूर्त 04:52 ए एम से 05:44 ए एम तक है. उस दिन का अभिजीत मुहूर्त कोई नहीं है. गोधूलि मुहूर्त शाम में 05:33 पी एम से 05:59 पी एम तक है, वहीं सायाह्न सन्ध्या का समय 05:33 पी एम से 06:51 पी एम तक है.
देव दीपावली पर दीप जलाने का शुभ समय
देव दीपावली पर प्रदोष काल में दीप जलाए जाएंगे. देव दीपावली को प्रदोष काल में दीप जलाने का शुभ समय शाम को 5 बजकर 15 मिनट से शाम 7 बजकर 50 मिनट तक है. उस दिन देव दीपावली का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 35 मिनट तक है.
सिद्धि योग में देव दीपावली
इस साल देव दीपावली पर सिद्धि योग बन रहा है. उस दिन सिद्धि योग प्रात:काल से लेकर दिन में 11 बजकर 28 मिनट तक है. उसके बाद से व्यतीपात योग होगा. देव दीपावली की पूर्णिमा तिथि में सर्वार्थ सिद्धि योग 6 नवंबर को सुबह 06:34 ए एम से लेकर 06:37 ए एम तक है.
देव दीपावली के दिन अश्विनी नक्षत्र प्रात:काल से लेकर सुबह 9 बजकर 40 मिनट तक है, उसके बाद से भरणी नक्षत्र है, जो अगले दिन सुबह 6 बजकर 34 मिनट तक है. फिर कृत्तिका नक्षत्र है.
देव दीपावली पर स्वर्ग की भद्रा
देव दीपावली वाले दिन भद्रा लगी रही है, लेकिन इसका वास धरती या पाताल लोक में न होकर स्वर्ग में है. स्वर्ग की भद्रा का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है. देव दीपावली पर भद्रा सुबह में 6 बजकर 36 मिनट से शुरू होगी और सुबह 8 बजकर 44 मिनट पर खत्म होगी.
देव दीपावली का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का अत्याचार बढ़ गया था. देवी, देवता, मनुष्य सभी परेशान थे. तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अंत किया, इससे तीनों लोकों में खुशी छा गई. देवी और देवता उस दिन काशी में गंगा के किनारे उपस्थित हुए. उन्होंने गंगा स्नान किया और प्रदोष काल में शिव पूजा करके दीप जलाए. यह उत्सव देव दीपावली के नाम से लोकप्रिय हुआ. आजकल देव दीपावली पर काशी, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर दीप जलाकर उत्सव मनाते हैं.
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