Sunday, October 26, 2025
23.5 C
Surat

30 या 31 अक्टूबर…कब है अक्षय नवमी? इस दिन बन रहा अद्भुत संयोग, उज्जैन के आचार्य से जानें तिथि, कथा


Last Updated:

Akshaya Navami 2025 Date: शास्त्रों में अक्षय नवमी का बहुत महत्व बताया गया है. अक्षय का अर्थ होता है, जिसका क्षरण न हो. इस दिन किए गए कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है. इसे इच्छा नवमी, आंवला नवमी, कूष्मांड नवमी, आरोग्य नवमी और धातृ नवमी के नाम से भी जाना है. उज्जैन के आचार्य से इसकी कथा भी जानिए…

Akshaya Navami: हिंदू धर्म में दिवाली के बाद पर्वों की झड़ी सी लग जाती है. आज से नहाय-खाय से छठ पर्व शुरू होगा, वहीं छठ के समापन के बाद आंवला नवमी आएगी. हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह पर्व आता है. इस दिन विशेष रूप से आंवले के पेड़ का पूजन होता है. उज्जैन के आचार्य आंनद भारद्वाज आंवला नवमी से जुड़ी कुछ विशेष बातें बताईं.

वैदिक पंचांग के अनुसार, 30 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 6 मिनट पर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि शुरू होकर 31 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी. इसके बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि शुरू होगी. इस अनुसार उदयातिथि के अनुसार 31 अक्टूबर को आंवला नवमी मनाई जाएगी.

आंवला नवमी पर दुर्लभ संयोग
ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर वृद्धि और रवि योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं. वृद्धि योग का संयोग सुबह 06 बजकर 17 मिनट लगभग से पूर्ण रात्रि तक है. साथ ही रवि योग दिन भर है. अक्षय नवमी पर शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है. बता दें कि आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है.

धार्मिक महत्व और पुण्य लाभ
शास्त्रों में उल्लेख है कि इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. आंवला नवमी के अवसर पर इस पुण्य को प्राप्त करने के लिए भक्तजन पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं और इसे भगवान विष्णु एवं शिव का आशीर्वाद पाने का माध्यम मानते हैं.

मान्यता के पीछे की कथा
आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा माता लक्ष्मी ने शुरू की थी. एक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आई. रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई. लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है. तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है. तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल महादेव को. आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवला वृक्ष की पूजा की. पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए. लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोग लगाया. इसके बाद स्वयं भोजन किया. तब से यह परंपरा चली आ रही है.

authorimg

Rishi mishra

एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट मीडिया से शुरुआत. साल 2023 से न्यूज 18 हिंदी के साथ डिजिटल सफर की शुरुआत. न्यूज 18 के पहले दैनिक जागरण, अमर उजाला में रिपोर्टिंग और डेस्क पर कार्य का अनुभव. म…और पढ़ें

एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट मीडिया से शुरुआत. साल 2023 से न्यूज 18 हिंदी के साथ डिजिटल सफर की शुरुआत. न्यूज 18 के पहले दैनिक जागरण, अमर उजाला में रिपोर्टिंग और डेस्क पर कार्य का अनुभव. म… और पढ़ें

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
homedharm

30 या 31 अक्टूबर…कब है अक्षय नवमी? इस दिन बन रहा अद्भुत संयोग, जानें कथा

Hot this week

Topics

aaj ka Vrishchik rashifal 27 October 2025 Scorpio horoscope in hindi

Last Updated:October 27, 2025, 00:07 ISTAaj ka Vrishchik...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img