अक्षय नवमी कथा (Akshaya Navami Katha)
अक्षय नवमी की कथा के अनुसार, एक राजा रोजाना नियम के अनुसार सवा मन आंवले का दान किया करता था, उसके बाद ही भोजन करता था. यही वजह थी कि उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया. राजा के दान करने से राज्य में खजाने की भरमार बनी रहती थी. राजा को ऐसा करता देख उनके पुत्र और बहू को चिंता होने लगी और वे सोचते थे कि पिताजी रोज इतने आंवले दान करेंगे, तो एक दिन सारा खजाना ही खाली हो जाएगा.
इसके बाद बेटे ने सोचा कि पिताजी से इस सिलसिले में बात की जाए, जिसके बाद उसने जाकर राजा से कहा, “पिताजी, अब यह दान बंद कर दीजिए. इससे हमारा धन नष्ट हो रहा है.”
राजा को बेटे की बात सुनकर बहुत दुख हुआ. वह रानी सहित महल छोड़कर जंगल चले गए. जंगल में वे आंवला दान नहीं कर पाए. अपने प्रण के कारण उन्होंने सात दिन तक कुछ नहीं खाया. भूख-प्यास से वे कमजोर हो गए. इसके बाद सातवें दिन स्वयं श्री हरि ने चमत्कार से जंगल में विशाल महल, राज्य, बाग-बगीचे और ढेर सारे आंवले के पेड़ उत्पन्न कर दिए.
सुबह राजा-रानी उठे तो हैरान रह गए. राजा ने रानी से कहा, “देखो रानी, सत्य कभी नहीं छोड़ना चाहिए.” दोनों ने नहा-धोकर आंवले दान किए और भोजन किया. अब वे जंगल के नए राज्य में खुशी से रहने लगे. वहीं, राजधानी में बहू-बेटे ने आंवला देवता और माता-पिता को अपमानित किया था, जिसके बाद उनके बुरे दिन शुरू हो गए. दुश्मनों ने राज्य छीन लिया. वे दाने-दाने को मोहताज हो गए.
काम की तलाश में वे पिता के नए राज्य में पहुंचे, जहां पर बहू-बेटे के हालात इतने खराब थे कि न ही राजा ने उन्हें पहचान सके न उनके बच्चे अपने माता-पिता को. लेकिन दोनों की खराब हालत देखते हुए राजा ने महल में काम करने के लिए रख लिया.
एक दिन बहू सास के बाल गूंथ रही थी. अचानक उसने सास की पीठ पर एक मस्सा देखा. उसे याद आया कि उसकी सास के पास भी ऐसा ही मस्सा था. बहू सोचने लगी, “हमने धन बचाने के चक्कर में उन्हें दान करने से रोका और आज वे कहां होंगे?” रोते-रोते उसके आंसू सास की पीठ पर गिरने लगे.
रानी ने पलटकर पूछा, “बेटी, तुम क्यों रो रही हो?” बहू ने सारा हाल बताया. रानी ने उसे पहचान लिया. राजा-रानी ने अपना हाल सुनाया और समझाया, “दान से धन कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता है.” बेटे-बहू को पश्चाताप हुआ. वे सब मिलकर सुख से रहने लगे.
(एजेंसी इनपुट के साथ)







