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आंवला नवमी के दिन सही तरीके से करें ये खास उपाय, माता लक्ष्मी का मिलेगा विशेष आशीर्वाद, जानिए पूजा-दान का महत्व


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Amla Navami 2025: आंवला नवमी या अक्षय नवमी पर विशेष: जानें इस पवित्र तिथि की धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं, आंवले के स्वास्थ्य और औषधीय लाभ, पूजा विधि, दान और अक्षय पुण्य प्राप्ति के उपाय. साथ ही पढ़ें आंवला नवमी से जुड़ी रोचक कथाएं और इसे मनाने का सही तरीका.

लोकल 18

Amla Navami 2025: आंवला नवमी, जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल, आंवला नवमी शुक्रवार 31 अक्टूबर, 2025 को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष में निवास करते हैं और श्रद्धापूर्वक की गई पूजा से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

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पौराणिक ग्रंथों में आंवले को दिव्य और अमृत तुल्य फल बताया गया है. ‘पद्म पुराण’ और ‘स्कंद पुराण’ में इसका वर्णन मिलता है. कहा जाता है कि आंवले का जन्म भगवान ब्रह्मा के आंसुओं से हुआ था, जबकि समुद्र मंथन के समय अमृत कलश से गिरी अमृत बूंदों से भी इसका उद्भव हुआ. कार्तिक नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष में निवास करते हैं. जो व्यक्ति इस अवधि में श्रद्धापूर्वक आंवले की पूजा करता है, उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है.

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माता लक्ष्मी की कथा अनुसार उन्होंने आंवले के वृक्ष की पूजा कर भगवान विष्णु और शिव को प्रसन्न किया. इसके बाद से माना जाता है कि इस दिन की पूजा से लक्ष्मी और विष्णु दोनों की कृपा मिलती है. आंवले की पूजा को शास्त्रों में विशेष महत्व प्राप्त है. स्नान, सेवन और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. चरक संहिता में उल्लेख है कि महर्षि च्यवन ने आंवले के सेवन से नवयौवन प्राप्त किया. आयुर्वेद अनुसार आंवला रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और दीर्घायु प्रदान करता है.

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आंवला नवमी दान, समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण का पर्व भी है. नियमित सेवन से स्वास्थ्य, सौंदर्य और ऊर्जा में वृद्धि होती है. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. पीले पुष्प, तुलसी दल, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित करें. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का पाठ करें. आंवला वृक्ष की परिक्रमा और जल अर्पित करें. हल्दी, रोली, फूल और दीपक से पूजन करें. गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दें.

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पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से प्रश्न किया, ‘हे प्रभु! कौन-सा वृक्ष ऐसा है जिसमें मेरा वास हो और जिसे पूजने से आशीर्वाद की प्राप्ति होती है?’ माता लक्ष्मी के इस प्रश्न के जवाब में भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि कार्तिक मास की नवमी तिथि को जो भक्त आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा, वह आपके आशीर्वाद से अक्षय फल प्राप्त करेगा. इसका अर्थ है कि उसका पुण्य नष्ट नहीं होगा और उसे जीवन में सुख, समृद्धि और दीर्घायु का लाभ मिलेगा.’ तब से कार्तिक शुक्ल नवमी को लोग आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं.

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आंवले के वृक्ष की पूजा को शास्त्रों में विशेष महत्व प्राप्त है. पौराणिक कथा में कहा गया है कि इस दिन आंवले से स्नान करना, आंवले का सेवन करना और आंवले का दान करमा तीनों ही कर्म मनुष्य को अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं. चरक संहिता में उल्लेख है कि इसी दिन महर्षि च्यवन ने आंवले के नियमित सेवन से नवयौवन का वरदान प्राप्त किया था. आयुर्वेद के अनुसार भी आंवला शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और दीर्घायु का प्रतीक है.

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