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UP News: बेहद चमत्कारी है यूपी की ये चौखट, जहां माथा टेकने से दूर होते है दुख-दर्द, दूर-दूर से आते है भक्त


मऊ: कभी-कभी आस्था ऐसे रूप में सामने आती है, जो लोगों के विश्वास को और गहरा कर देती है. आपने मंदिरों की पूजा तो बहुत देखी होगी, लेकिन क्या कभी किसी चौखट की पूजा होते देखी है? अगर नहीं, तो आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के देवकली देवलास गांव में स्थित सूर्य मंदिर के पास एक ऐसी ही चमत्कारी विक्रमादित्य चौखट है, जो लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बनी हुई है.

यह चौखट न सिर्फ अपने धार्मिक महत्व और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इससे जुड़ी लोककथाएं और मान्यताएं आज भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं. कहा जाता है कि यह चौखट सम्राट विक्रमादित्य की स्मृति से जुड़ी है. उन्होंने इस स्थान को सूर्य उपासना की पवित्र स्थली घोषित किया था, जिसके कारण लोग आज भी इस चौखट की पूजा करते हैं.

विक्रमादित्य ने की थी सूर्य उपासना
मंदिर समिति के प्रबंधक विजय शंकर पांडे बताते हैं कि यह चौखट उस काल की निशानी है, जब सम्राट विक्रमादित्य ने भारत में धर्म, संस्कृति और न्याय की नींव मजबूत की थी. लोक कथाओं के अनुसार, राज्य भ्रमण के दौरान विक्रमादित्य इस क्षेत्र में पहुंचे थे. सूर्य देव के प्रति उनकी भक्ति को देखकर उन्होंने यहां सूर्य मंदिर के निर्माण का आदेश दिया था.

मंदिर के निर्माण के समय विक्रमादित्य ने स्वयं यहां पूजा-अर्चना की थी. पहले यहीं पुराना सूर्य मंदिर था, बाद में इसके बगल में नया मंदिर बनाया गया.

लोगों का मानना है कि मंदिर के मुख्य द्वार पर खड़े होकर विक्रमादित्य ने सूर्य देव से आशीर्वाद मांगा था कि यह स्थान सदा ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक बना रहे. उनकी स्मृति में लाल पत्थर की जो चौखट बनाई गई, उसे आज लोग “विक्रमादित्य चौखट” के नाम से जानते हैं.

लोग मानते हैं चौखट में है चमत्कारी शक्ति
स्थानीय लोगों के अनुसार यह साधारण पत्थर नहीं है. इसमें ऐसी ऊर्जा निहित है, जो मनुष्य के दुख-दर्द को दूर कर देती है. ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी बड़ी समस्या या बीमारी से परेशान है और श्रद्धापूर्वक सूर्य कुंड में स्नान कर चौखट पर माथा टेकता है, तो उसे राहत मिलती है.

हर रविवार लगती है श्रद्धालुओं की भीड़
हर रविवार के साथ-साथ संक्रांति, छठ, मकर संक्रांति और रवि पर्व के अवसर पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. लोग अपने परिवार और बीमार परिजनों के साथ यहां आते हैं और श्रद्धा से पूजा-पाठ करते हैं. यही वजह है कि विक्रमादित्य चौखट को लोग आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं.

इतिहासकारों और पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि यह चौखट गुप्तकालीन या उससे भी प्राचीन युग की हो सकती है. इसका निर्माण काले और लाल बेसाल्ट पत्थर से किया गया है, जिसमें प्राचीन काल की झलक साफ दिखाई देती है. चौखट पर कुछ धुंधले अक्षर और रेखाएं खुदी हुई हैं, जिन्हें अब तक कोई पढ़ नहीं सका है.

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