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Som Pradosh Vrat Katha In Hindi | सोम प्रदोष व्रत कथा


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Som Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में सोम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. सोम प्रदोष तिथि का व्रत करने के बाद कथा का पाठ अवश्य किया जाता है. मान्यता है कि सोम प्रदोष तिथि का व्रत करके कथा पढ़ने व सुनने मात्र से ही सभी पाप नष्च हो जाते हैं और शिवजी की कृपा से जीवन में कभी किसी चीज की कमी का सामना नहीं करना पड़ता. यहां पढ़ें सोम प्रदोष व्रत की कथा…

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आज सोम प्रदोष व्रत, शिव पूजन के समय अवश्य पढ़ें संपूर्ण पौराण‍िक कथा

Som Pradosh Vrat Katha In Hindi: आज सोम प्रदोष तिथि का व्रत किया जाएगा. प्रदोष व्रत भगवान शिव की उपासना का अत्यंत पवित्र दिन है. जब यह व्रत सोमवार के दिन पड़ता है, तब इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है. प्रदोष व्रत की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष का अर्थ है, संध्या काल, जब दिन और रात का मिलन होता है (सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे के भीतर का समय). इस समय शिवजी नंदी पर आरूढ़ होकर कैलाश से पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और भक्तों को वरदान देते हैं. भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करने के बाद सोम प्रदोष तिथि का व्रत किया जाता है. यहां पढ़ें सोम प्रदोष व्रत कथा…

सोम प्रदोष व्रत की पौराण‍िक कथा | Som Pradosh Vrat Katha

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था, इसलिए सुबह सुबह वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन से ही वह अपना और अपनी संतान का पेट पालती थी. एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला. ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई. वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था. शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था.
राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा. एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उनको भी राजकुमार अच्छा लगा. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शंकर ने सपने में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. जैसा भगवान शिव ने कहा, वैसा ही राजा ने कर दिया.

ब्राह्मणी हमेशा से प्रदोष व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को फिर से प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही हे प्रभु दीनानाथ भगवान शंकर अपने अन्य सभी भक्तों के दिन भी फेरते रहें. आपकी कृपा हम सभी पर बनी रहे.
हर हर महादेव! हर हर महादेव! भगवान शंकर की जय, माता पार्वती की जय

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