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नींद ही नहीं हार्टबीट पर भी असर करता है देर रात तक मोबाइल देखना! रिसर्च में दावा


डिजिटल दुनिया में स्मार्टफोन अब हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है. काम, मनोरंजन, सोशल मीडिया- सब कुछ एक टच दूर. लेकिन रात के समय स्क्रीन की नीली रोशनी में खोए रहना सिर्फ नींद को प्रभावित नहीं करता, बल्कि दिल की धड़कन को भी बिगाड़ सकता है.

BMC Public Health जर्नल के कई अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि देर रात मोबाइल यूज से मेलाटोनिन हार्मोन दब जाता है, सर्कैडियन रिदम बिगड़ता है, और इससे ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम (ANS) पर असर पड़ता है, जो हार्टबीट की रीदम को प्रभावित करता है.

नींद पर प्रभाव: नीली रोशनी का खेल
स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी (ब्लू लाइट) मेलाटोनिन उत्पादन को रोकती है—यह हार्मोन नींद को नियंत्रित करता है. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन में पाया गया कि ब्लू लाइट एक्सपोजर से नींद आने में देरी होती है और REM स्लीप कम हो जाती है. इस अध्ययन में 12 प्रतिभागियों पर प्रयोग किया गया, जहां ब्लू लाइट से मेलाटोनिन 99 मिनट देर से रिलीज हुआ.

(National Sleep Foundation) की 2020 रिपोर्ट के अनुसार, 70% से ज्यादा वयस्क सोने से 1 घंटे पहले स्क्रीन यूज करते हैं, जिससे इंसोम्निया का खतरा बढ़ता है.

हार्टबीट पर असर: ANS और HRV का असंतुलन
नींद की कमी हृदय स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है. देर रात मोबाइल यूज से स्ट्रेस बढ़ता है, जो सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम को एक्टिवेट करता है, HRV को कम करता है और हार्ट रेट को अनियमित बनाता है. BMC Public Health के एक प्रोस्पेक्टिव कोहोर्ट स्टडी में युवा वयस्कों (20-24 वर्ष) में पाया गया कि हाई मोबाइल फोन यूज और नाइट अवेकनिंग्स से करंट स्ट्रेस, स्लीप डिस्टर्बेंस और डिप्रेशन सिम्पटम्स बढ़ते हैं, जो ANS को प्रभावित कर HRV में बदलाव लाते हैं.

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, अगर आप देर रात तक जागते हैं या बहुत देर से सोते हैं, तो शरीर की जैविक घड़ी (circadian rhythm) गड़बड़ा जाती है. इससे शरीर का नर्वस सिस्टम असंतुलित हो जाता है- यानी दिल पर कंट्रोल रखने वाला सिस्टम ठीक से काम नहीं करता. नतीजतन, दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं और हार्ट रेट वैरिएबिलिटी (HRV) का संतुलन बिगड़ जाता है. इस अध्ययन में Percutaneous Coronary Intervention (PCI) कराए मरीजों में पाया गया कि देर से सोने वालों में हार्ट अटैक या स्ट्रोक जैसे गंभीर कार्डियोवैस्कुलर इवेंट्स का खतरा लगभग 30% तक बढ़ जाता है.

लंबे समय के जोखिम: हृदय रोग का खतरा
अध्ययनों से पता चलता है कि क्रॉनिक स्लीप डिसरप्शन से हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का रिस्क बढ़ता है. एक RCT प्रोटोकॉल में स्क्रीन रिडक्शन से HRV में सुधार और स्ट्रेस मार्कर्स (जैसे कोर्टिसोल) में कमी पाई गई.

बचाव के उपाय

देर रात मोबाइल यूज एक ‘साइलेंट किलर’ की तरह है- इससे नींद की कमी होती है और यह दिल को कमजोर बनाता है. हार्वर्ड, AHA और जर्नल्स के अध्ययन स्पष्ट सबूत देते हैं. छोटे बदलाव से बड़ा फायदा हो सकता है. अपनी सेहत को प्राथमिकता दें!


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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-late-night-mobile-use-disrupt-not-just-your-sleep-but-also-your-heartbeat-9815088.html

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