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First Holi After Marriage: पहली होली मायके में मनाने की परंपरा सिर्फ अंधविश्वास नहीं, बल्कि नई दुल्हन को भावनात्मक रूप से सहज और खुश रखने का तरीका है. इससे रिश्तों में अपनापन बढ़ता है, और परिवारों के बीच मधुरता बनी रहती है. यही वजह है कि ये परंपरा आज भी दिलों में जिंदा है.
First Holi After Marriage: भारत में हर त्योहार के पीछे कोई न कोई परंपरा, मान्यता और भावनात्मक जुड़ाव छिपा होता है. खासकर होली का त्योहार तो रंगों के साथ रिश्तों में मिठास घोलने वाला त्योहार माना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शादी के बाद नई दुल्हन अपनी ससुराल की पहली होली क्यों नहीं देखती? ये परंपरा सदियों से चली आ रही है, और आज भी देश के कई हिस्सों में इसका पालन किया जाता है. कहते हैं, शादी के बाद बहू की पहली होली मायके में ही मनाई जाती है, न कि ससुराल में. मान्यता ये है कि अगर नई दुल्हन ससुराल की पहली होली देख ले, तो घर में कलह बढ़ती है और सास-बहू के रिश्तों में दूरियां आने लगती हैं, लेकिन इस परंपरा के पीछे सिर्फ धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि सामाजिक और भावनात्मक वजहें भी हैं. पुराने समय में जब लड़की की नई-नई शादी होती थी, तो उसे अपने नए घर, नए माहौल और नए रिश्तों से तालमेल बिठाने का समय चाहिए होता था. ऐसे में पहली होली मायके में मनाना उसे सहज और खुश महसूस करवाने का तरीका भी था. आइए जानते हैं इस मान्यता के पीछे के धार्मिक और तर्कसंगत कारण.
धार्मिक और पारंपरिक कारण
-पुरानी मान्यता के अनुसार, अगर नई बहू और सास एक साथ जलती हुई होली देखें, तो घर में अनबन और मतभेद बढ़ जाते हैं. कहा जाता है कि इससे परिवार के रिश्तों में दरार आती है, और घर की शांति भंग होती है. कई जगहों पर माना जाता है कि दुल्हन का अपनी ससुराल की पहली होली देखना अशुभ होता है. इसलिए दुल्हन को मायके भेज दिया जाता है ताकि वो वहां निश्चिंत होकर त्योहार मना सके और घर में किसी भी नकारात्मक असर से बचा जा सके.

रिश्तों की मिठास और समझ का पहलू
-धार्मिक कारणों से आगे बढ़ते हुए अगर हम इसे रिश्तों की नजर से देखें, तो इसमें भावनात्मक तर्क भी छिपा है. नई शादी के बाद लड़की अपने ससुराल में थोड़ा असहज महसूस करती है. वहां बुजुर्गों की मौजूदगी और नए माहौल के चलते वो खुलकर त्योहार नहीं मना पाती. वहीं मायके में वो अपने परिवार के बीच सहज रहती है. पति के साथ मायके में पहली होली मनाने से दोनों के बीच का रिश्ता और मजबूत होता है. यह समय उनके बीच अपनापन और विश्वास बढ़ाने का भी मौका होता है.
-इसी वजह से कई जगह ये रिवाज माना जाता है कि दामाद को भी अपनी पत्नी के साथ उसकी पहली होली मायके में ही मनानी चाहिए. इससे दोनों के बीच प्यार और समझ गहरी होती है, और वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहती है.
लॉजिकल पॉइंट ऑफ व्यू
-अगर इस परंपरा को लॉजिकल नजरिए से देखा जाए तो इसका एक व्यावहारिक कारण भी है. नई शादी के तुरंत बाद दुल्हन ससुराल के माहौल में पूरी तरह ढल नहीं पाती. ऐसे में मायके की पहली होली उसके लिए एक आरामदायक और खुशी भरा अनुभव बन जाती है.
-वो वहां खुद को खुला महसूस करती है, पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ खुलकर रंग खेलती है. वहीं दामाद के लिए भी ये मौका होता है पत्नी के परिवार से अपनापन बढ़ाने का. इस तरह दोनों परिवारों के बीच आपसी समझ और स्नेह बढ़ता है.

एक और लोक मान्यता
-कुछ जगहों पर ये भी माना जाता है कि अगर किसी महिला के घर बच्चे का जन्म होली के आसपास हुआ है, तो उसे भी ससुराल की होली नहीं देखनी चाहिए. कहा जाता है कि ऐसा करने से बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है.
-इसी तरह से, मायके में पहली होली खेलने वाली दुल्हन की आने वाली संतान को स्वस्थ और मजबूत माना जाता है. यह सिर्फ आस्था नहीं बल्कि समाज में सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने वाली परंपरा भी है.
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