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Bihar Most Popular Peda: घनबेरिया को पेड़ा वाला गांव के नाम से भी जाना जाता है और पिछले करीब दो दशक से भी अधिक समय से घनबेरिया का पेड़ा लोगों की जुबान पर रच बस गया है. ग्रामीण बताते हैं कि करीब डेढ़ दशक पहले गांव के लाल बहादुर सिंह ने सबसे पहले पेड़े का कारोबार शुरू किया था.
जमुई. बिहार में चुनाव को जानने और समझने वाले लोगों की तादाद इतनी है कि जैसे ही चुनाव की घोषणा होती है माहौल चुनावी हो जाता है. हर तरफ प्रत्याशियों की चर्चा होती है. जीत-हार का गणित तय होने लगता है. लेकिन चुनाव के बीच जमुई में अचानक ही खैरा का बालूशाही और घनबेरिया का पेड़ा काफी चर्चा में आ गया है. चुनाव की भागदौड़ के बीच घनबेरिया के पेड़ा की मिठास लोगों की जुबान पर है. और हो भी क्यों ना, जब देश के गृहमंत्री यह कह दें कि वह चुनाव जीतने के बाद इसी से प्रधानमंत्री का मुंह मीठा करवाएंगे तो फिर आखिर इस मिठाई की चर्चा होना भी लाजमी है.
दरअसल, जमुई में एक चुनावी सभा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने यह कहा कि अगर जमुई के चारों सीट से एनडीए के प्रत्याशी चुनाव जीतते हैं तो वह खैरा के बालूशाही और घनबेरिया के पेड़ा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुंह मीठा करवाएंगे.
अमेरिका और यूएई तक है इसकी डिमांड
घनबेरिया के जिस पेड़ का गृहमंत्री अमित शाह ने जिक्र किया, उसकी डिमांड स्थानीय इलाकों में ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूएई तक है. दरअसल, अमित शाह ने कहा था कि “मैं पटना में था तो वहां मुझे किसी ने बताया कि आप जमुई जा रहे हैं. तो वहां खैरा का बालूशाही और घनबेरिया का पेड़ा काफी प्रसिद्ध है.” बता दें कि घनबेरिया का पेड़ा इतना प्रसिद्ध है कि इसकी सप्लाई स्थानीय इलाकों के साथ-साथ जमुई जिले में तो होती है. साथ ही बिहार के कई जिलों में यहां का पेड़ा भेजा जाता है. इसके साथ ही झारखंड के देवघर में भी यहां का पेड़ा स्टॉल लगाकर बेचा जाता है. झारखंड के भी कई जिले ऐसे हैं जहां घनबेरिया का पेड़ सप्लाई होता है. सबसे खास बात तो यह है कि अमेरिका और यूएई तक में रहने वाले लोग यहां से पेड़ा खरीदकर ले जाते हैं.
दो दशक से बना हुआ है पेड़े वाला गांव
बताते चलें कि घनबेरिया को पेड़ा वाला गांव के नाम से भी जाना जाता है और पिछले करीब दो दशक से भी अधिक समय से घनबेरिया का पेड़ा लोगों की जुबान पर रच बस गया है. ग्रामीण बताते हैं कि करीब डेढ़ दशक पहले गांव के लाल बहादुर सिंह ने सबसे पहले पेड़ का कारोबार शुरू किया था. तब वह एक पेड़ के नीचे बैठकर पेड़ा बनाया करते थे. फिर धीरे-धीरे और लोग इसमें जुड़ने लगे और अब पूरा गांव पेड़ा कारोबार में जुड़ गया है. घनबेरिया में वर्तमान में ढाई दर्जन से भी अधिक पेड़ा की दुकान है. और सबसे मजेदार बात यह है कि यहां की ज्यादातर तुरकान केवल पेड़ा की ही है, जहां पूरे दिन पेड़ा खरीदने वाले लोगों की भीड़ लगी रहती है.
75 क्विंटल दूध की होती है खपत
स्थानीय कारोबारी बताते हैं कि यहां की दुकानों में प्रतिदिन एक क्विंटल से डेढ़ क्विंटल तक पेड़ा बिक जाता है और ऐसे 15 दुकान हैं. कुल मिलाकर रोजाना 15 से 20 क्विंटल पेड़ा की सप्लाई होती है. एक क्विंटल पेड़ा बनाने के लिए 5 क्विंटल दूध की आवश्यकता पड़ती है और प्रतिदिन 75 से 100 क्विंटल दूध की खपत की जाती है. 300 रुपए प्रति किलो की दर से पेड़ा बेचा जाता है. उन्होंने बताया कि स्थानीय इलाकों से ही दूध भी मंगवाया जाता है. जिस कारण पशुपालकों के पास भी रोजगार का एक बेहतर जरिया है. घनबेरिया का पेड़ इतना प्रसिद्ध है कि त्योहार के मौसम में या सावन के महीने में खास कर यहां एडवांस बुकिंग करनी पड़ती है, और लोगों को लंबी लाइन लगाकर पेड़ा खरीदना पड़ता है.

with more than more than 5 years of experience in journalism. It has been two and half year to associated with Network 18 Since 2023. Currently Working as a Senior content Editor at Network 18. Here, I am cover…और पढ़ें
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