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Dharma Aastha : बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी बनने के सख्त नियम हैं. उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. मंदिर की व्यवस्थाएं देखनी होती है. सुबह कुंड में स्नान करके, बिना किसी को स्पर्श किए भगवान का शृंगार करना होता है. बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी को पहाड़ों पर पूजनीय माना जाता है.
देहरादून. देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे तो कई प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन यहां स्थित चार धाम के दर्शन के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु बड़ी संख्या में हर साल पहुंचते हैं. अटूट आस्था के प्रतीक बाबा केदार के दर्शन हो या बाबा बद्री से जुड़ा विश्वास हो, उनके दर्शन मात्र से जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं. लोग भीड़भाड़ में भी इनके दर्शन के लिए कतारों में कठिन सफर को तय करके इन धामों में पहुंचते हैं. केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो चुके हैं और इस साल 25 नवंबर को बद्रीनाथ धाम के कपाट को बंद हो जाएंगे. इन दिनों ठिठुरन भरे मौसम में भी इस पवित्र धाम के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. जितना यह धाम पवित्र है उतने ही विशेष इस धाम के मुख्य पुजारी भी हैं. मुख्य पुजारी को रावल कहा जाता है. यह उत्तराखंड नहीं बल्कि दक्षिण भारत से होते हैं. नम्बूदरी पाद परिवार से ही रावल बनाएं जाते हैं. यह शंकराचार्य के वंशज माने जाते हैं जिन्होंने राज्य के चार धामों और क़ई मंदिरों को स्थापित करने का काम किया था. यहां स्थानीय डिमरी समुदाय के ब्राह्मण रावल के सहायक होते हैं जो कभी मूल रूप से दक्षिण भारत के ही रहे हैं. बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल को पहाड़ में पूजनीय माना जाता है.
देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप राणा बताते हैं कि भगवान बद्रीविशाल धाम में मुख्य पुजारी को रावल कहा जाता है. आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा ही रावल बनाने की व्यवस्था स्थापित की गई थी. रावल का चयन दक्षिण भारत यानी केरल राज्य के नम्बूदरी पाद ब्राह्मण से किया जाता है. यह भगवान विष्णु को मानने वाले यानी वैष्णव होते हैं जिनका चयन उन्हीं की वंशावली से होता है. हालांकि आधिकारिक व्यवस्था के अनुसार, साल 1948 में एक व्यवस्था बनाई गई जिसमें बद्री केदार मंदिर समिति ही आधिकारिक रूप से रावल चयनित करती है. इसमें उपरावल की भी व्यवस्थाएं बनाई गई हैं.
बहुत सख़्त हैं नियम
कुलदीप राणा बताते हैं कि बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी यानी रावल के सख्त नियम होते हैं, उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है, मंदिर की व्यवस्थाएं देखनी होती है. सुबह कुंड में स्नान करके बिना किसी को स्पर्श किये भगवान का शृंगार करना होता है, पूजन,प्रातः काल, सायं काल आरती करवाना होता है. सारी व्यवस्था और पूजन वही करते हैं, जो गर्भ गृह में भगवान बद्री विशाल को स्पर्श कर सकते हैं. लोक मान्यता यह भी हैं कि रावल की आदिकालिक व्यवस्था में एक ऐसे बालक का जन्म होता था जिसमें प्राकृतिक रूप से ही उसके शरीर पर जन्मजात मांस की जनेऊ आकृति होती थी. ऐसे बालक को बद्रीनाथ धाम को समर्पित कर दिया जाता था. उत्तर भारत के केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम में दक्षिण भारत से ही पुजारी बनाये जाते हैं.
Priyanshu has more than 10 years of experience in journalism. Before News 18 (Network 18 Group), he had worked with Rajsthan Patrika and Amar Ujala. He has Studied Journalism from Indian Institute of Mass Commu…और पढ़ें
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