दिल्ली एम्स के एंडोक्राइनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म डिपार्टमेंट में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. यशदीप गुप्ता ने बताया कि प्रीडायबिटीज स्टेज में रिमिशन की संभावना सबसे अधिक होती है. अगर खान-पान सही रखा जाए तो पूरी जिंदगी भी इसी स्टेज में निकाली जा सकती है.
इसे लेकर सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के डायबिटीज प्रिवेंशन प्रोग्राम (DPP) की स्टडी 2002 में पब्लिश हुई थी. साल 2020 में इसे अपडेट किया गया, जिसमें दिखाया गया कि लाइफस्टाइल इंटरवेंशन (जैसे वजन घटाना और एक्सरसाइज करना) से 58% लोगों में डायबिटीज होने का जोखिम कम हो गया. करीब 15 साल के फॉलो-अप में पाया गया कि 55% प्रतिभागी उसी ग्लूकोज लेवल पर बने रहे.
इस स्टेज पर इंसुलिन रेजिस्टेंस शुरू हो जाता है, लेकिन पैनक्रियास अभी भी पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बना लेता है. इसमें लक्षण आमतौर पर नहीं दिखते, लेकिन थकान, बार-बार पेशाब आना या भूख बढ़ना जैसे हल्के लक्षण दिखाई दे सकते हैं.
साल 2023 की ICMR स्टडी के अनुसार, भारत में लगभग 13.6 करोड़ लोग प्रीडायबिटीज से ग्रसित हो सकते हैं. यह महाराष्ट्र की आबादी से भी अधिक है और देश की कुल जनसंख्या का लगभग 15.3% हिस्सा है. प्रीडायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को डायबिटीज विकसित होने का ज्यादा जोखिम माना जाता है.
डायबिटीक स्टेज पर क्या करने की जरूरत?
टाइप 2 डायबिटीज के रिवर्सल पर कई रिसर्च हो चुकी हैं. अगर सही समय पर सही कदम उठाए जाएं, तो मरीज दवाइयों और इंसुलिन से हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है.
डॉ. यशदीप गुप्ता ने बताया, “हम टाइप 2 डायबिटीज को रिवर्स नहीं बल्कि रिमिशन कर सकते हैं. इसका मतलब है कि हम इसे आगे बढ़ने से रोक सकते हैं और कुछ हद तक सुधार कर सकते हैं, लेकिन अगर डाइट और लाइफस्टाइल में बदलाव नहीं किया गया तो यह फिर वापस हो सकती है.”
साल 2018 में ब्रिटेन का डायरेक्ट (DiRECT) ट्रायल किया गया, जिसमें 306 मरीज शामिल थे, जिनकी डायबिटीज 6 साल से कम पुरानी थी. इस दौरान ज्यादातर लोगों ने 3 से 5 महीने तक रोजाना 825-850 कैलोरी ली. इस स्टडी के बाद 46% मरीजों की डायबिटीज 1 साल में पूरी तरह गायब हो गई. इसके अलावा जिन्होंने 15 किलो वजन घटाया, उनमें 86% मरीज दवाई-मुक्त हो गए थे. अगले 2 साल के बाद भी 36% मरीजों में डायबिटीज वापस नहीं लौटी.
कब तक रहता है रिमिशन
डॉ. गुप्ता के अनुसार, यह रिमिशन कब तक रहता है, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है. यह वैसा ही है जैसे हम किसी मंज़िल तक पहुंच तो जाते हैं, लेकिन वहां कितनी देर तक टिके रहेंगे, यह ज्यादा मायने रखता है.
अगर डायबिटीज पर कंट्रोल न किया जाए तो शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाता है और पैनक्रियास के बीटा सेल्स धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगते हैं. बाद में इसके लक्षण जैसे बार-बार पेशाब आना, प्यास लगना, वजन घटना, धुंधला दिखना और घाव देर से भरना स्पष्ट हो जाते हैं.
डायबिटीज की शुरुआती स्टेज जो कि 5-6 साल की हो सकती है, उसमें दवाओं, डाइट और एक्सरसाइज से कंट्रोल किया जा सकता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज एंड डाइजेस्टिव एंड किडनी डिसीजेज (NIDDK) की रिसर्च के अनुसार, इस स्टेज में 50-70% मरीजों को ओरल मेडिकेशन जैसे मेटफॉर्मिन की जरूरत पड़ती है.
क्या ज्यादा समय होने के बाद छुटकारा संभव?
डायबिटीज के 5 से 6 साल बाद मरीज पर इसका असर और तेज हो जाता है. यहां इंसुलिन बनना काफी कम हो जाता है, HbA1c लगातार 7% से ऊपर रहता है. इस दौरान मरीज को कभी-कभी इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है. इसमें दिल की बीमारियां, किडनी फेलियर, आंखों की समस्या, नसों का खराब होना और पैरों में अल्सर शामिल होते हैं.
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) की 2021 ग्लोबल डायबिटीज एटलस रिपोर्ट के अनुसार, टाइप 2 डायबिटीज वाले 50% से अधिक मरीजों में 10-15 साल बाद कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं हो जाती हैं. इसमें ब्लड शुगर कंट्रोल मुश्किल हो जाता है और मल्टीपल ऑर्गन डैमेज हो सकता है.
इस स्टेज पर डायबिटीज को रिवर्स या रिमिशन करना संभव नहीं होता. ऐसी स्टेज पर बीटा सेल्स डैमेज हो चुके होते हैं. ऐसे में मरीज का HbA1c 6.5% से नीचे लाना और दवाओं के बिना सामान्य ब्लड शुगर बनाए रखना संभव नहीं होता.
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-what-stage-is-it-easier-remission-or-reversed-diabetes-sjn-2-9849698.html







