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माता काली के पैरों के नीचे आपने भगवान शिव को फोटो या सीरियल में कई बार देखा होगा और इसके पीछे की पौराणिक कथाओं के बारे में जानते हैं. लेकिन माता काली के पैरों के नीचे भगवान शिव का होना केवल कथा तक सीमित नहीं है बल्कि इससे बड़ी एक और बात है. आइए जानते हैं इसके पीछे का सबसे बड़ा रहस्य.

आपने कई तस्वीरों और सीरियल में जीभ निकालते हुए माता काली के पैरों के नीचे देवों के देव महादेव को देखा होगा. लेकिन मां काली के पैरों के नीचे भगवान शिव को दिखाया जाना सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक बहुत गहरी कहानी और दार्शनिक महत्व को अपने भीतर समेटे हुए है. मां काली के इस अवतार में दिखने वाले प्रसंग राक्षस रक्तबीज के वध से जुड़ा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता काली की पूजा करने से सभी परेशानियों का अंत होता है और हर सुख की प्राप्ति होगी. मां काली की पूजा से भूत-प्रेत समेत सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है और ग्रहों का शुभ फल भी मिलता है.

पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस रक्तबीज के शरीर से गिरने वाली हर एक बूंद से एक नया रक्तबीज पैदा हो जाता था. उसके आतंक से तीनों लोक त्रस्त हो गए. जब देवताओं ने मां दुर्गा से प्रार्थना की, तो उन्होंने काला वर्ण, प्रचंड शक्ति और विनाशकारी तेज से भरा हुआ महाकाली का रूप धारण किया. मां काली ने युद्ध में उतरकर राक्षसों का नाश करना शुरू किया और रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही पी जाती थीं ताकि कोई नया रक्तबीज पैदा न हो सके.

राक्षसों का वध करते-करते मां काली का क्रोध इतना बढ़ गया कि उनका विनाशकारी रूप पूरे संसार के लिए खतरा बन गया. उनका रौद्र रूप इतना प्रचंड हो गया कि देवताओं को समझ नहीं आया कि उन्हें कैसे शांत किया जाए. सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी. शिवजी को पता था कि अगर मां काली इसी रूप में आगे बढ़ती रहीं तो पूरा सृष्टि चक्र ही खतरे में पड़ सकता है. इसलिए महादेव चुपचाप मां काली के मार्ग में लेट गए.

जब क्रोध में चूर मां काली आगे बढ़ रही थीं, तभी उनका पैर अनजाने में भगवान शिव की छाती पर पड़ गया. जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने अपने ही प्रिय पति पर पैर रख दिया, काली जी का क्रोध तुरंत शांत हो गया. उनके चेहरे पर शर्म, पश्चात्ताप और भावुकता आ गई. उसी क्षण उनका विनाशकारी रूप शांत हो गया और वे अपने सौम्य स्वरूप में लौट आईं.

इस दृश्य का दार्शनिक महत्व भी बेहद अद्भुत है. यहां काली ऊर्जा, गति, क्रिया यानी शक्ति का प्रतीक हैं, जबकि शिव स्थिरता, शांति और चेतना यानी शिव तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. हिंदू दर्शन कहता है कि शक्ति बिना शिव व्यर्थ हैं और शिव बिना शक्ति निष्क्रिय. जब ऊर्जा (काली) नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो उसे संतुलित करने के लिए स्थिर चेतना (शिव) की जरूरत होती है. काली का शिव पर खड़े होना यह बताता है कि शक्ति की हर क्रिया का आधार शिव यानी शुद्ध चेतना ही होती है.

यह दृश्य केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि यह सिखाता है कि जीवन में ऊर्जा और शांत मन दोनों का संतुलन जरूरी है. शक्ति बिना शिव विनाश कर सकती है और शिव बिना शक्ति कोई काम शुरू नहीं कर सकते. यही दोनों के मिलन में सृष्टि का संतुलन है.
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