Naimisharanya Tirth In Uttar Pradesh: अंग्रेजी कलेंडर का 11वां महीना यानी नवंबर घूमने के लिहाज से सबसे उपयुक्त माना जाता है. क्योंकि, इस महीने मौसम सुहावना रहता है, न ज़्यादा गर्मी और न ही ज़्यादा ठंड होती है. इस दौरान घूमने के शौकीन बेस्ट डेस्टिनेशन का प्लान बनाते हैं. किसी को हिल स्टेशन की बर्फबारी तो किसी को समुद्र तटों का आनंद लेना पसंद होता है. लेकिन, कुछ ऐसे भी लोग हैं जो धार्मिक स्थल जाने की योजना बनाते हैं. ऐसी यात्रा करने वालों के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जहां जाने से आपकी यात्रा यादगार बन सकती है. जी हां, यह प्रसिद्ध स्थल उत्तर प्रदेश में है, जिसे नैमिषारण्य के नाम से जानते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, नैमिषारण्य वो जगह है जहां अब तक कलयुग का प्रभाव नहीं है. इसका इतिहास बहुत ही प्राचीन है. इसे इस पावन भूमि का महान तीर्थ बताया गया है.
कहां है पवित्र तीर्थ स्थल नैमिषारण्य
महान तीर्थ नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश के सीतापुर में पड़ता है. लखनऊ से करीब 80 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित यह प्राचीन हिन्दू तीर्थ है. इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमषार के नाम से भी जाना जाता है. नैमिष यानी निमिष किंवा निमेष तथा आरण्य यानी अरण्य अर्थात वन क्षेत्र परमात्म तत्व का क्षेत्र.
चक्रतीर्थ की पौराणिक कथा
चक्रतीर्थ के बारे में कथा प्रचलित है कि एक बार अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन कि जगत कल्याण के लिए उन्हें तपस्या करनी है और तपस्या के लिए दुनिया में सर्वश्रेष्ठ पवित्र, सौम्य और शांन्त भूमि के बारे में बताएं. ऋषि-मुनि कलयुग के प्रारंभ को लेकर भी चिंतित थे. ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों से कहा कि इस चक्र के पीछे चलते हुए जाएं. जिस भूमि पर इस चक्र का मध्य भाग यानी नेमि खुद गिर जाए तो समझ लेना कि पॄथ्वी का मध्य भाग वही है. ब्रह्माजी ने यह भी कहा कि वह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा. कहा जाता है कि इसी स्थान पर चक्र का नेमि गिरा था, जिस वजह से इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा और यह जगह चक्रतीर्थ कहलाई. यह भी कहा जाता है कि नैमिषारण्य वो स्थान है जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने दुश्मन देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं.

88 हजार ऋषि-मुनियों की तप स्थली
नैमिषारण्य वही स्थान है जहां महापुराणों की रचना हुई. कहा जाता है कि, महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी यहां आए थे. इतना ही नहीं प्राचीन काल में 88 हजार ऋषि-मुनियों ने इसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी. इसलिए इसे तपोभूमि भी कहा जाता है. नैमिषारण्य का प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में होता है. यहां उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया था.
नैमिषारण्य में क्या देखें
चक्रतीर्थ: नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ सरोवर है. इस बड़े गोलाकार जलाशय के चारों ओर जल भरा रहता है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं. इसके अलावा, श्रद्धालु जल में चलते हुए इस गोल चक्र की परिक्रमा भी करते हैं. जल भरे हुए घेरे के बाद चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं. यहां विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर हैं. मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है. पौराणिक कथा के अनुसार, चक्र तीर्थ में ही 88 हजार ऋषि-मुनियों ने तप की थी.
84 कोस की परिक्रमा: नैमिषारण्य की परिक्रमा भी की जाती है. यह 84 कोस की परिक्रमा है. परिक्रमा हर साल फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा तिथी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है. यहां पंचप्रयाग नाम से एक पक्का सरोवर है. सरोवर के किनारे अक्षयवट नामक वृक्ष हैं.
ललिता देवी मंदिर: यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती का हृदय गिरा था. इसके अलावा, यहां वह पवित्र स्थान भी है जहाँ ऋषि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया था और पुराणों का वाचन किया था.
हनुमान गढ़ी: इस मंदिर में हनुमान जी की एक भव्य प्रतिमा है जो भगवान श्री राम और लक्ष्मण को कंधों पर बिठाए हुए हैं. इसके अलावा, दशाश्वमेध घाट, पांडव किला, त्रिशक्ति धाम मंदिर और सीता कुंड भी देख सकते हैं.
अन्य दर्शनीय स्थल: नैमिषारण्य में व्यास शुकदेव का मंदिर है. मंदिर के बाहर व्यासजी की गद्दी है. यहां दशाश्वमेध टीला पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण और पांचों पांडवों की मूर्तियां हैं. यहीं पर चारों धाम मंदिर भी हैं. महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित जगन्नाथ धाम, बद्रीनाथ धाम, द्वारिकाधीश धाम और रामेश्वरम धाम के मंदिर हैं.
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