Demolition Of Babri Masjid: आज अयोध्या और देशभर में 6 दिसंबर 1992 को गिराए गए विवादित ढांचा विध्वंश के 33 साल हो गए. यही वो दिन है जब अयोध्या में रामलला का भव्य और दिव्य मंदिर बनाने का रास्ता बनाया गया था. इस घटना के साक्षी रामविलास वेदांती भी बने थे, जिन्हें संतों ने रामकथा मंच पर संकल्प पत्र ले जाने का दायित्व सौंपा था. रामविलास वेदांती ने बात करते हुए उस दिन को क्रमवार याद किया. बता दें कि आज 33 साल पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया था, जिसकी गूंज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सुनाई दी. बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 22 जनवरी 2024 को भव्य राममंदिर का निर्माण किया गया.
राम भक्तों के संघर्ष पर खास बातचीत
राम मंदिर आंदोलन से शुरुआती दौर से जुड़े रहे आध्यात्मिक गुरु और पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने 33 साल पहले गिराए गए विवादित ढांचे और राम भक्तों के संघर्ष पर खास बातचीत की. रामविलास वेदांती बताते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को बड़ी संख्या में साधु संत और कारसेवक राम जन्मभूमि में बने परिसर के चबूतरे पर बैठे हुए थे. गौरी-गणेश के पूजन के साथ भगवान राम की आराधना की गई. विचार चल रहा था कि कैसे भव्य और दिव्य राम मंदिर का निर्माण हो. गौरी गणेश के पूजन में महंत अवैद्यनाथ महाराज, परमहंस श्रीरामचंद्र जी महाराज, नृत्य गोपाल दास जी महाराज, भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी, आचार्य धर्मेंद्र, स्वामी चिन्मयानंद, जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और अशोक सिंघल बैठे हुए थे.

रामविलास वेदांती गए मंच पर
वेदांती ने बताया कि गौरी गणेश पूजन के बाद अशोक सिंघल ने परमहंस श्रीरामचंद्र जी महाराज से रामकथा मंच पर जाकर संकल्प कराने के लिए कहा था, लेकिन वहां मौजूद लाखों की भीड़ को देखकर उन्होंने इनकार कर दिया. इसी तरह अन्य संतों ने भी जाने से मना कर दिया. इसके बाद महंत अवैद्यनाथ महाराज ने मेरा नाम लेते हुए कहा कि वेदांती ही भीड़ के बीच जा सकते हैं. तब वह संकल्प पत्र मुझे दिया गया.
‘सभी कारसेवक अच्छी तरह जानते थे’
उन्होंने बताया कि बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और मराठी स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों की टीमें राम जन्मभूमि परिसर में पूरी तेजी के साथ हजारों की संख्या में टूट पड़ीं. बाहर पाइप की दीवार बनी हुई है, जिसे तोड़ना शुरू किया गया. मैं मंच का संचालन करता था, इसलिए मुझे सभी कारसेवक अच्छी तरह जानते थे. इसलिए सभी ने मुझे अच्छे से ऊपर तक पहुंचा दिया. मंच पर पहुंचने के बाद देखा कि वहां सुरक्षाकर्मियों की तैनाती थी. अधिकारी बार-बार गोली चलाने का आदेश देते थे, लेकिन किसी ने गोली नहीं चलाई.

कल्याण सिंह ने सीधा आदेश दिया
रामविलास वेदांती ने दिवंगत कल्याण सिंह को याद करते हुए कहा कि उस समय मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने सीधा आदेश दिया था कि कोई गोली नहीं चलेगी. इसके बाद उस परिसर में किसी भी तरह से गोली नहीं चली. इसी बीच कार सेवक विवादित ढांचे को तोड़ने के लिए चढ़ गए. नीचे से भी खुदाई चालू हो चुकी थी. वेदांती ने बताया कि आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने रामलला को गोद में लिया और अन्य संतों ने बाकी देवी-देवताओं को गोद में उठाया और वहां से निकल आए. इसके बाद कारसेवा शुरू हो चुकी थी.
14 खंभों में देवी-देवताओं की मूर्तियां
रामविलास वेदांती ने कहा कि मैंने मंच पर संकल्प शुरू कर दिया था. मैंने वहां नारा लगाया, ‘राम नाम सत्य है, रामलला का ढांचा ध्वस्त है.’ ऐसा इसलिए कि मैंने कभी उस ढांचे को मस्जिद नहीं बताया, क्योंकि उसमें कोई भी चिन्ह मस्जिद का नहीं था. 14 कसौटी के खंभे, जिसे बाबर नहीं तुड़वा पाया था, उसमें 14 खंभों में देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं. हिंदुओं के धार्मिक चिन्ह उन खंभों पर थे.

राम जन्मभूमि की परिक्रमा
उन्होंने बताया कि ढांचे के अंदर चारों ओर राम जन्मभूमि की परिक्रमा थी. किसी भी मस्जिद में कोई परिक्रमा नहीं होती है. जब मैं रामलला मंदिर में था, मुझे अच्छे से याद है कि किसी मुसलमान ने वहां नमाज अदा नहीं की, इसलिए कि वहां मूर्तियां थीं. हमने खंडहर को तोड़ा था. हम जानते थे कि जब तक वह खंडहर रहेगा, मंदिर नहीं बनेगा. इसलिए हमने खंडहर तोड़कर रामलला का भव्य मंदिर बनाने का रास्ता साफ किया.

रामलला को विराजमान किया गया
रामविलास वेदांती कहते हैं कि खंडहर तोड़ने के बाद राम जन्मभूमि परिसर में एक चबूतरा बनाया गया, जहां रामलला को विराजमान किया गया. इसके बाद पूजा-पाठ शुरू की गई थी. अगले दिन 7 दिसंबर को भी कारसेवा जारी रही. अगले दिन शाम तक भाषण चलते रहे. 1992 का वह दृश्य आज भी मुझे याद है. ये सब मेरी आंखों के सामने हुआ था.







